सनातन वैदिक हिन्दू धर्मशास्त्रों में शरीर और मन को संतुलित करने के लिए अनेक व्रत और उपवास बताए गए हैं। सभी व्रतों का अपना विशिष्ट महत्व होता है। किंतु इन समस्त व्रत और उपवासों में सर्वाधिक महत्व समस्त वैष्णवों के परमप्रिय पाक्षिक व्रत एकादशी व्रत का है, जो प्रत्येक माह में दो बार, अर्थात शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष में एक एक बार पड़ती है।
प्रत्येक एकादशी का अलग अलग नाम एवं महत्व है। इसी क्रम में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है।
अतः आज हम विजया एकादशी व्रत के विषय में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे। यदि आप इस जानकारी को वीडियो के माध्यम से प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे यूट्यूब चैनल वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका स्वागत है। साथ ही वैदिक ज्योतिष शास्त्र एवं सनातन धर्म की अनेकों जानकारियां प्राप्त करने के लिए वैदिक ऐस्ट्रो केयर यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबा कर ऑल सेलेक्ट करना ना भूले।
वर्ष 2022 में 27 फरवरी को फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का नाम विजया एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस व्रत को बहुत पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता है कि जो कोई भक्त पूर्ण विधि विधान के साथ विजया एकादशी व्रत का पालन करता है,इस व्रत के प्रभाव से उस व्यक्ति को उसके हर एक कार्य में सफलता प्राप्त होती है। एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाता है। अत: दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। किन्तु यदि स्वास्थ्य समस्याओं के चलते आवश्यक हो तो भोजन शुद्ध सात्विक अथवा दुग्ध फलाहार आदि ही लेना चाहिए। एकादशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जगकर शौच स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सर्व प्रथम भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करें। फिर व्रत का संकल्प लेकर भगवान नारायण की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग लगाएं। पूरे दिन निराहार व्रत रखकर सन्ध्या समय पुनः पूजन करें, एवं विजया एकादशी व्रत की कथा श्रवण करें। विधि पूर्वक उपवास रखने से उपासक को कठिन से कठिन परिस्थितियों पर भी विजय प्राप्त होती है। विजया एकादशी व्रत का पारणा मुहूर्त 28 फरवरी को प्रातः काल 6 बजकर 47 मिनट से 9 बजकर 6 मिनट तक है।
धर्मराज युधिष्ठिर बोले - हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले हे राजन् - फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए। तब ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत समस्त पापों को नाश करने वाला है। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे अपने प्रिय अनुज लक्ष्मण तथा वामांगी सीताजी सहित पंचवटी में निवास करने लगे।
वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज करने लगे।
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार सुनाया। श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सहमति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।
श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए।
लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए। मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ। वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे। इस व्रत की विधि के अनुसार दशमी तिथि के दिन स्वर्ण, चाँदी, ताँबा या मिट्टी का एक कलश जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस कलश के नीचे सतनजा एवं ऊपर पूर्णपात्र में जौ रखें। उस पर श्रीनारायण भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।
तत्पश्चात कलश के सामने बैठकर दिन भर द्वादशाक्षर मन्त्र का जाप करें और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस कलश को किसी श्रेष्ठ विद्वान ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से अगाध समुद्र पार कर रावण पर विजय पाई। अत: हे राजन् युधिष्ठिर। जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करता है, उसे विजयश्री अवश्य प्राप्त होती है। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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