महाशिवरात्रि सनातन धर्म संस्कृति के सबसे बड़े पर्वों में से एक महापर्व है। महाशिवरात्रि पर्व वैदिक ज्योतिष शास्त्र की पञ्चाङ्ग परम्परा के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती जी के साथ हुआ था। अतः साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
आज हम महाशिवरात्रि पर्व के विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे। यदि आप इस जानकारी को वीडियो के माध्यम से प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे यूट्यूब चैनल वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका स्वागत है। साथ ही वैदिक ज्योतिष शास्त्र एवं सनातन धर्म की अनेकों जानकारियां प्राप्त करने के लिए वैदिक ऐस्ट्रो केयर यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबा कर ऑल सेलेक्ट करना ना भूले।
चतुर्दशी तिथि के स्वामी स्वयं भगवान भोलेनाथ शिव ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि व्रत पर्व के रूप में मनाया जाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस तिथि को अत्यंत शुभ माना गया है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का विवाह हिमालय राज की पुत्री देवी पार्वती के साथ हुआ था, अतः यह दिन शिवशक्ति पूजन हेतु विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। आंग्ल मत के अनुसार इस वर्ष 2022 में महाशिवरात्रि व्रत पर्व दिनांक 1 मार्च को मंगलवार के दिन है। महाशिवरात्रि पर्व शैव सम्प्रदाय का प्रमुख पर्व है। साथ ही वैष्णव, शाक्त, एवं स्मार्त समस्त सनातन धर्म संस्कृति के अनुयायियों द्वारा आशुतोष भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत धारण कर भगवान शिव का, अपनी मनोकामना के अनुसार अलग अलग द्रव्यों से अभिषेक पूजन किया जाता है। महाशिवरात्रि पर्व के दिन गंगादि पवित्र नदियों के जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से वृष्टि होती है।
रोगों की शांति के लिए कुशोदक से अभिषेक किया जाता है। पशुओं की प्राप्ति के लिए दही से, तथा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। धन की प्राप्ति के लिए शहद और घी से, तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए तीर्थ जल से अभिषेक करना चाहिए। यदि पुत्र प्राप्ति की कामना हो तो गाय के दूध से अभिषेक करें। वन्ध्या, काकवन्ध्या, मृतवत्सा स्त्री यदि गो दुग्ध से महाशिवरात्रि पर्व के दिन चार प्रहर की पूजा कर अभिषेक करें तो शीघ्र ही उत्तम शिवभक्त पुत्र प्राप्त करती हैं।
शास्त्रों में भगवान शिव के अभिषेक के लिए रुद्री पाठ के पांच प्रकार बतलाए हैं। पहली विधि है षडंग या रूपक विधि, इस विधि के अंतर्गत भगवान शिव का रुद्राष्टाध्यायी के आठ अध्यायों के साथ शान्तध्याय और स्वस्तिप्रार्थनाध्याय से अभिषेक किया जाता है।
दूसरी विधि है रुद्री या एकादशनी। इस विधि में षडंग पाठ में नमकाध्याय अर्थात पंचम अध्याय, तथा चमकाध्याय अर्थात अष्टम अध्याय का संयोजन कर
रुद्राध्याय की ग्यारह आवृत्ति की जाती हैं। तीसरी विधि है लघु रुद्र। एकादशनी रुद्री की ग्यारह आवृत्ति पाठ को लघुरुद्र पाठ कहा जाता है। इसकी दो विधियाँ हैं। यह एक ही दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके या ग्यारह दिन तक एक ब्राह्मण के द्वारा सम्पन्न किया जा सकता है।
चतुर्थ विधि है महारुद्र। लघुरुद्र की ग्यारह आवृत्ति रुद्री का 121 आवृत्ति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है।
यह ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा ग्यारह दिन में सम्पूर्ण होता है।
पांचवी विधि है अतिरुद्र। महारुद्र की ग्यारह आवृत्ति पाठ होने से महारुद्र अनुष्ठान सम्पन्न होता है।
यह अनुष्ठान पाठात्मक, अभिषेकात्मक, तथा हवनात्मक तीनों ही प्रकार से किए जाते हैं। वैसे तो इन्हें किसी भी शुभ मुहूर्त में किया जा सकता है, लेकिन यदि महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर यह अनुष्ठान किया जाए तो इसका प्रभाव अनन्त गुणा बढ़ जाता है।
महाशिवरात्रि व्रत कब मनाया जाए, इसके लिए शास्त्रों के अनुसार कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं -
चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का आठवाँ मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए।
दूसरे नियम के अनुसार यदि चतुर्दशी तिथि दूसरे दिन निशीथकाल के पहले भाग को स्पर्श करे और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है।
इन दोनों स्थितियों को छोड़कर अन्य हर स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है।
व्रत धारण करने वाले समस्त भक्तों को इस दिन सूर्योदय से पूर्व जगकर स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। और शिवालय जाकर शिवलिंग पर जल अवश्य चढाएं। पूरे दिन निराहार व्रत धारण कर रात्रि में भगवान शिव की चार प्रहर की पूजा करें। अगले दिन प्रातः काल भगवान को भोग लगाकर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा देकर व्रत खोलें। महाशिवरात्रि पर्व के संदर्भ में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। शिवमहापुराण की एक कथा के अनुसार हिमालय राज की पुत्री भगवती पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए अति कठिन तपस्या की थी। जिसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था। यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र दिन माना जाता है।
इस दिन के महत्व को लेकर एक अन्य कथा बहुत प्रचलित है, जिसके अनुसार इस दिन एक किरात अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया किन्तु उसे उस दिन कोई शिकार नहीं मिला। वह थककर भूख-प्यास से परेशान हो एक तालाब के किनारे गया, जहाँ बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था। भूख से व्याकुल वह शिकारी बेल फल तोड़ने के लिए विल्ववृक्ष पर चढ़ा तो कुछ बेलपत्र टूटकर शिवलिंग पर भी गिर गए। प्यास बुझाने के लिए जल पीने लगा तो कुछ जल शिवलिंग पर भी गिर गया। भूमि पर रखे अपने तरकश को उठाने के लिए शिवलिंग के सामने झुका तो शिवरात्रि के दिन शिव-पूजन की पूरी प्रक्रिया उसने अनजाने में ही पूरी कर ली। अनजाने में ही की गई पूजा से ही भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर प्रकट हो गए, और किरात को वर मांगने के लिए कहा। भगवान शिव को सन्मुख देखकर उस शिकारी को वैराग्य ज्ञान हो गया। भगवान शिव ने उसे मोक्षपद प्रदान कर शिवलोक में वास दिया। आप और हम यह समझ सकते हैं कि जब अज्ञानतावश महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर की पूजा का इतना अद्भुत फल है, तो समझ-बूझ कर देवाधिदेव महादेव का पूजन कितना अधिक फलदायी होगा। यदि महाशिवरात्रि पर्व से जुड़ा आपका कोई प्रश्न है या आप इस व्रत से जुड़ी कुछ और जानकारी चाहते हैं, तो कृपया कमेंट बॉक्स में लिखें। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आशुतोष भगवान शिव की वैदिक विधि द्वारा अभिषेक पूजन करने हेतु आप हमसे संपर्क कर सकते हैं, वैदिक ऐस्ट्रो केयर की ओर से आपको और आपके परिजनों को महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार
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