शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2022

कुण्डली में ईश्वर-प्रेम और साधना योग

नमस्कार, वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। भगवत सत्ता को किसी न किसी रूप में प्रत्येक मनुष्य स्वीकार करता है। यदि कोई व्यक्ति यह कहे कि वह नास्तिक है और भगवान को नहीं मानता, तो इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि ईश्वर नहीं है, बल्कि इसका तात्पर्य है कि उस व्यक्ति के पास स्वयं में इतनी साधना शक्ति ही नहीं है कि वह ईश्वरीय सत्ता का अनुभव भी कर सके। जैसे, यदि किसी व्यक्ति के पास 2g मोबाइल फोन हो और वह 4g 5g प्रयोग ना कर पाए, और ये कहे कि 4g 5g नेटवर्क होता ही नहीं है। बस ठीक इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के पास साधना का बल भी नहीं होता, और साधना से भगवत्प्राप्ति के लिए व्यक्ति की जन्मकुंडली में ईश्वर प्राप्ति के योग होना भी परम आवश्यक होता है। यदि ऐसे शुभ योग जन्मकुंडली में उपस्थित हों तो व्यक्ति को ईश्वरीय अनुभूति अवश्य ही हो जाती है। आज हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे। आप विषय की पूर्ण जानकारी के लिए इस लेख को पूरा अवश्य पढ़ें।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में ईश्वर प्राप्ति के योगों के लिए सबसे पहले जन्मकुंडली के बारह भावों में से प्रथम अर्थात लग्न भाव, पंचम व नवम भाव व भावेशों पर विचार करना चाहिए। इन भावों में जितनी शुभ ग्रहों की स्थिति या दृष्टि होगी जातक का विश्वास ईश्वरीय सत्ता में उतना ही अधिक होगा, जातक का ध्यान प्रभु में उतना ही अधिक लगेगा। पंचम व नवम भाव के कारक गुरु ग्रह होते हैं।
गुरु ग्रह, ज्ञान, मंत्र विद्या, वेदांत ज्ञान, धर्म गुरु, ग्रंथ कर्ता, संस्कृत व्याकरण आदि के मुख्य कारक होते हैं। यदि जन्म कुंडली में गुरु लग्न में, तृतीय भाव में, पंचम भाव में या नवम भाव में हो तो उस जातक का मन भगवान की भक्ति में अवश्य लगता है। नवग्रहों में मन के कारक ग्रह चंद्र हैं और भक्ति के कारक गुरु, अर्थात बृहस्पति ग्रह हैं। जन्म कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र गुरु योग हो तो यह योग ईश्वर प्रेम पैदा करता है। यही योग यदि कुंडली में प्रथम भाव, नवम भाव, पंचम भाव में बनता हो तो जातक आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छूने वाला होता है। यदि गुरु लग्न में हो तो ऐसा जातक वेद पाठी ब्राह्मण होता है। यदि कुंडली में कहीं भी उच्च का गुरु होकर लग्न को देख रहा हो तो जातक धर्मात्मा, सदगुणी एवं विवेकशील साधु होता है। यदि पंचम भाव में पुरुष ग्रह हों या पुरुष ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक पुरुष देवताओं की पूजा करने वाला होता है और यदि पंचम भाव में स्त्री राशि हो या चंद्रमा, शुक्र बैठे हों या किसी एक की दृष्टि हो तो जातक देवियों की पूजा करने वाला होता है। और यदि पंचम भाव में शनि, राहु, केतु हों या इन ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक भक्ति तो करता है किंतु कामनावश भक्ति पूजा करने वाला होता है। गुरु व शनि एक अंशों में नवम भाव या दशम भाव में एक साथ बैठे हों शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो यह मुनि योग का निर्माण करता है। मुनि योग में जन्म लेने वाला जातक सांसारिक प्रपंचों से दूर होकर वैरागी सन्यासी बन जाता है। चंद्रमा से केंद्र में गुरु हो तो यह गजकेसरी योग का निर्माण करता है इस योग में जन्म लेने वाला जातक भी ईश्वर भक्ति करने वाला होता है। कुंडली के पंचमभाव से ईश्वर प्रेम और नवम भाव से धार्मिक कर्मकांड , अनुष्ठान का विचार होता है । 
कोई भी व्यक्ति यदि अपने घर में पूजा अनुष्ठान करवाता है तो जब नवम और पंचम दोनों शुभलक्षण युक्त हों तभी अनुष्ठान क्रिया भक्ति के साथ संपन्न होती है। पंचम भाव प्रगाढ़ भक्ति का द्योतक है । जब पंचम और नवम भाव में सकारत्मक सम्बन्ध बनता है तो जातक भक्ति और अनुष्ठान दोनों के साथ रहने से उच्च कोटि का साधक अवश्य बनता है। दशम स्थान कर्मस्थान होता है और सन्यास योग भी इंगित करता है, यदि पंचमेश और नवमेश का नवम भाव या नवमेश से सम्बन्ध हो तो साधना में उत्कृष्टता आती है। यदि सूर्य पंचम स्थान पर हो या सूर्य की पंचम स्थान पर दृष्टि हो तो जातक सूर्य का उपासक होता है। वहीं यदि चन्द्रमा और सूर्य पंचम भाव में बैठे हों या पंचम भाव पर दृष्टि डालते हों तो जातक अर्द्ध -नारीश्वर स्वरुप की साधना करने वाला होता है। यदि पंचम भाव में मंगल ग्रह स्थित हों या दृष्टि हो तो जातक कर्तिकेय, अथवा बुध ग्रह पंचम भाव में स्थित हो या दृष्टि डाले तो भगवान विष्णु , और यदि पंचम भाव में बृहस्पति स्थित हो या दृष्टि डाले तो जातक भगवान शंकर की उपासना करने वाला होता है। 
यदि शनि या राहु और केतु का समबन्ध पंचम भाव या पंचमेश से हो तो जातक तांत्रिक क्रिया करने वाला या नकरात्मक शक्तियों की साधना करने वाला होता है ।
शनि ग्रह का समबन्ध यदि पंचम भाव या विशेष रूप से नवम भाव से हो तो जातक कठोर तपस्या करने वाला होता है ऐसा जातक धर्मिक आडम्बर और जातिगत भेदभाव को न मानने वाला और स्पर्शदोषादि को ना मानने वाला होता है । जातक प्रायः रीति-रिवाजों का विरोधी और दर्शन को अपनी तर्क शक्ति से स्पष्ट करने वाला होता है। यदि जन्मपत्रिका में इस प्रकार के योग ना हों तो व्यक्ति भगवद्भक्ति नहीं कर पाता, यहां तक की यदि ऐसा व्यक्ति ग्रह जनित पीड़ाओं से त्रस्त भी हो तो भी वह पूजा अनुष्ठान आदि उपाय भी नहीं कर पाता। यदि उपाय कर भी ले तो पूजा अनुष्ठान बिना भाव के ही करता है और अक्सर ऐसे व्यक्ति को पूजन करवाने वाला आचार्य पंडित भी ठग या वैदिक विधियों को ना जानने वाला अज्ञानी ही मिलता है। जिससे केवल धन और समय ही व्यर्थ होता है। यदि जन्मकुंडली में ग्रह जनित भक्ति के योग ना हों तो भी ऐसे व्यक्ति के लिए उनके परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा भगवत्कृपा प्राप्ति के लिए साधन अवश्य करने चाहिए। क्योंकि भगवान के अनुग्रह से सब सम्भव हो जाता है। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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