वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में जब सूर्य और राहू जिस किसी भी स्थान में स्थित होते हैं, उस स्थान के सभी फल नष्ट कर देते हैं और इन दोनों ग्रहों के योग और दृष्टि पात से व्यक्ति की कुंडली में एक ऐसा दोष उत्पन्न होता है जो कि व्यक्ति के सभी भौतिक, सांसारिक सुखों को छीन कर अनेक प्रकार के मानसिक, शारिरिक दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है। जन्म कुंडली में उपस्थित इस दोष को वैदिक ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष के नाम से जाना जाता है। अपनी कुंडली में उपस्थित दोष एवं योग आदि और उनसे बचाव के विषय में जानने के लिए आप हमारे व्हाट्सएप नम्बर पर भी सम्पर्क कर अपनी व्यक्तिगत ज्योतिषीय समस्याओं का कारण जानकर उनके उपाय कर सकते हैं। आज के वीडियो में हम पितृ दोष के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे। अतः आप वीडियो को अंत तक अवश्य देखें, और साथ ही वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आयकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
यदि किसी भी जन्मकुंडली में पितृदोष और पितृ ऋण उपस्थित हो तो वह जन्मकुंडली शापित कुंडली कही जाती है। जन्मकुंडली में यदि सूर्य पर शनि और राहु-केतु की दृष्टि पड़ रही हो, या सूर्य, शनि राहु केतु की युति के द्वारा प्रभावित हो, तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की उपस्थिति मानी जाती है। और जन्मकुंडली में पितृदोष की उपस्थिति से जातक के आध्यात्मिक, पारिवारिक, सामाजिक , सांसारिक जीवन के साथ साथ आर्थिक उन्नति में भी अनेक बाधाएं उत्पन्न होती हैं।
पितृ दोष लगने के अनेकों कारण हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माना गया है कि परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्माननीय लोगों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध न करने से, उनका वार्षिक श्राद्ध न करने से पितरों का दोष लगता है। इसके फलस्वरूप पितृदोष के कारण परिवार में अशांति, वंशवृद्धि में रुकावट, आकस्मिक बीमारी, आकस्मिक संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख-सुविधाएं होते हुए भी मन असंतुष्ट रहना आदि अनेक लक्षण दृष्टिगोचर हो सकता है।
यह दोष हमारे पूर्वजों और कुल परिवार के लोगों से जुड़ा हुआ है। जब तक वैदिक विधि द्वारा इस दोष का निवारण विधि विधान से नहीं कर लिया जाए, यह दोष समाप्त नहीं होता है। यह दोष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है यानि यदि पिता की जन्मपत्रिका में पितृदोष उपस्थित है और उसने इसकी शांति नहीं कराई है, तो संतान की कुंडली में भी यह दोष अवश्य देखा जाता है। और इसके प्रभाव से पीढ़ी दर पीढ़ी सभी प्रभावित होते रहते हैं।
जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के बाद सही तरीके से उसका अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो, तो मान्यता है उनकी आत्मा घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट “पितृदोष” के रूप में जातक की कुंडली में दिखाई देता है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी भी जातक की जन्मकुंडली में राहु ग्रह का प्रभाव अधिक हो, या कुछ विशेष स्थितियों में राहु हो, तो पितृ-दोष की समस्या हो जाती है। जैसे
राहु अगर कुंडली के केंद्र स्थानों या त्रिकोण में हो। या राहु ग्रह का सम्बन्ध सूर्य ग्रह या चन्द्र ग्रह से हो।
या राहु ग्रह का सम्बंध जन्मकुंडली में शनि ग्रह या बृहस्पति ग्रह से हो। जन्मपत्रिका में यदि राहु द्वितीय या अष्टम भाव में उपस्थित हो।
जन्म कुंडली का नवम् स्थान धर्म का भाव कहा जाता है। यह पिता का घर भी होता है। अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है, तो यह सूचित करता है कि पूर्वजों की कुछ इच्छायें अधूरी रह गयी थी।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल, और शनि नैसर्गिक रूप से खराब ग्रह माने जाते हैं , साथ ही राहु और केतु सभी लग्नों व राशियों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं। नवां भाव, नवें भाव का मालिक ग्रह, नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित हो तो यह पितृ दोष कहा जाता है।
पितृदोष की शांति हेतु यह कुछ वैदिक उपाय किए जा सकते हैं। जैसे घर में श्रीमद्भागवत के गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें।
हर चतुर्दशी को पीपल पर दूध चढ़ाएं।
सवा किलो चावल लाकर रोज अपने ऊपर से एक मुट्ठी चावल सात बार उतारकर पीपल की जड़ में डाल दें। ऐसा लगातार 41 दिन करें।
कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो, तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर और उसपर हार चढ़ाकर रोज़ाना उनकी पूजा स्तुति करनी चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।साथ ही अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर ज़रूरतमंदों अथवा विद्वान कर्मकांडी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।
काले कुत्ते को उड़द के आटे से बने बड़े हर शनिवार को खिलाएं।
घर के आसपास पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल चढ़ाएं। इसके साथ ही पुष्प, अक्षत, दूध, गंगा जल और काले तिल भी अर्पित करें। हाथ जोड़कर पूर्वजों से अपनी ग़लतियों के लिए क्षमा-याचना करें और उनसे आशीर्वाद माँगें।
साथ ही यदि सम्भव हो तो अपने दिवंगत पितरों की मुक्ति के निमित्त एक बार श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा अवश्य करवाएं।पितृदोष शांति हेतु यह सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
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वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार।
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