अमावस्या या अमावस हिंदू पञ्चाङ्ग परम्परा के अनुसार वह तिथि होती है जिसमें चंद्रमा लुप्त हो जाता है व रात को घना अंधेरा छाया रहता है। हिंदू मास को दो हिस्सों में विभाजित किया जाता है शुक्लपक्ष एवं कृष्णपक्ष। जिसमें पक्ष में चंद्रमा बढ़ता रहता है वह शुक्ल पक्ष कहलाता है पूर्णिमा की रात के पश्चात चन्द्रमा घटते-घटते अमावस्या तिथि को पूरा लुप्त हो जाता है। अतः इस पक्ष को कृष्ण पक्ष कहते हैं। पंचांग के अनुसार हिन्दू मास का अंत भी इसी तिथि को माना जाता है। सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है जो कि बहुत ही पुण्य फलदायी मानी गई है। साथ ही यह तिथि बहुत ही सौभाग्यशाली भी मानी जाती है। सोमवार के दिन पड़ने से यह बहुत ही शुभ योग माना जाता है। अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव हैं ।इसलिये श्राद्ध कर्म या पितरो की शांति के लिये यह तिथि सर्वोोोत्तम मानी जाती है।
ज्योतिष शास्त्र व धार्मिक दृष्टि से यह तिथि बहुत महत्वपूर्ण होती है। पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिये इस तिथि का विशेष महत्व होता है क्योंकि इस तिथि को तर्पण, स्नान, दान आदि के लिये बहुत ही पुण्य फलदायी माना जाता है। किसी भी जातक की जन्मकुंडली में यदि काल सर्प दोष उपस्थित है या कोई जातक यदि काल सर्पदोष से पीड़ित है तो उससे मुक्ति के उपाय के लिये भी श्रावण मास की यह सोमवती अमावस्या तिथि काफी कारगर मानी जाती है।
- श्रावण सोमवती अमावस्या तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करना, अर्थात रुद्राभिषेक करना विशेष शुभ माना जाता है।
- पितृ दोष की शांति हेतु इस तिथि पर पितरों का तर्पण करने का विधान है। यह तिथि चंद्रमास की आखिरी तिथि होती है।
- इस तिथि पर गंगा स्नान और दान का सर्वाधिक महत्व है।
- इस दिन क्रय-विक्रय और सभी शुभ कार्यों को करना वर्जित माना गया है।
- किसानों के लिए अमावस्या तिथि के दिन खेतों में हल चलाना या खेत जोतना भी मना है।
- इस तिथि पर जब कोई बच्चा पैदा होता है तो शांतिपाठ अवश्य करवाना चाहिए।
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