मंगलवार, 21 जुलाई 2020

हरियाली तीज

नमस्कार।
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वैदिक सनातन धर्म परम्परा में हमारे प्राचीन ऋषि महर्षियों ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर मानवों के कष्टों को दूर करने हेतु अनेकों व्रतों का उल्लेख किया है। जिनका अनुसरण करने मात्र से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर तो होते ही हैं, साथ ही साथ मनोकामना भी पूरी होती है।
कुछ ऐसे विशेष व्रत हैं जिनके करने मात्र से व्यक्ति अपनी विशेष मनोकामनाएं पूरी कर सकता है, उन्ही में से एक प्रमुख व्रत है हरियाली तीज व्रत।

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सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कज्जली तीज या हरियाली तीज मनाई जाती है। इस वर्ष हरियाली तीज 23 जुलाई को मनाई  जा रही है। हरियाली तीज के दिन सुहागिन स्त्रियों द्वारा झूला झूलना एवं  श्रावणी मल्हार आदि शैली के गीत गाए जाते हैं। और साथ ही अविवाहित कन्याओं द्वारा इस दिन मनोइच्चित वर की प्राप्ति हेतु व्रत धारण किया जाता है।
 
मान्यता है कि हरियाली तीज व्रत को सबसे पहले गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने किया था और इस व्रत के प्रभाव से भगवान शंकर उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए थे। अतः इसी कारण कुंवारी लड़कियां भी मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत रखकर माता पार्वती की पूजा करती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हरियाली तीज के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया।माता- पार्वती के कहने पर शिव जी ने आशीर्वाद दिया कि जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी उसके विवाह में आने वाली समस्त बाधाएं दूर हो जाएंगी।
इस दिन निर्जला व्रत धारण किया जाता है। साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती जी की विधि विधान पूर्वक पूजा की जाती है। इस दिन व्रत के साथ-साथ शाम को व्रत की कथा सुनी जाती है। माता पार्वती जी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है।
 
देेश के अनेक भागों में यही व्रत पर्व आषाढ़ तृतीया को भी मनाया जाता है उसे हरितालिका तीज कहते हैं। दोनों में पूजन एक जैसा होता है अत: कथा भी एक जैसी ही है।
वैसे तो श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं। परन्तु ज्यादातर लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं। यह त्योहार उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है।
 
विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। और पूरा दिन बिना भोजन और जल के व्यतीत करती हैं तथा दूसरे दिन प्रातः स्नान और पूजा के बाद व्रत पूरा करके भोजन ग्रहण करती हैं। 
साथ ही इस दिन स्त्रियों के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां उनके ससुराल भेजी जाती है। 

 हरियाली तीज के दिन व्रत धारण करने वाली महिलाएं भगवान शिव एवं माता पार्वती की विधिवत पूजा करती हैं।
पूजा के अंत में तीज की कथा सुनती हैं। कथा के समापन पर महिलाएं मां गौरी से पति की लंबी उम्र की कामना करती है। इसके बाद घर में उत्सव मनाया जाता है और भजन व लोक नृत्य आदि किए जाते है।

इस दिन हरे वस्त्र, हरी चुनरी, हरा लहरिया, हरा श्रृंगार, मेहंदी, झूला-झूलने का भी रिवाज है। जगह-जगह झूले पड़ते हैं। इस त्योहार में स्त्रियां हरी लहरिया न हो तो लाल, गुलाबी चुनरी में भी सजती हैं, गीत गाती हैं, मेंहदी लगाती हैं,श्रृंगार करती हैं, नाचती हैं। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है।
 

हरियाली तीज व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन कैलाश पर्वत पर भगवान शिव माता पार्वती को अपने मिलन की दिव्य कथा सुनाते हैं| भगवान शिव कहते हैं, पार्वती! तुमने मुझे अपने पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया था, किन्तु मुझे पति के रूप में पा न सकीं थीं | 108 वीं बार तुमने जब पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया तब जाकर मैं तुम्हें पति रूप में सदा सर्वदा के लिए प्राप्त हुआ।

फिर माता पार्वती ने जिग्यासा वश भगवान से निवेदन किया, और कहा ! प्रभु मुझे हमारे मिलन का वह सुखद वृत्तांत विस्तार से सुनने की अति इच्छा है, अतः मुझ पर कृपा करें, और वह कथा सुनाएं।

भगवान शिव कहते हैं कि– पार्वती तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था| इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया| तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे| तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी| भाद्रपद तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की| इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा कि ‘पिताजी,  मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है| अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे|" पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गये| कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि विधान के साथ हमारा विवाह किया|”  “हे पार्वती! भाद्रपद शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका| इस व्रत का महत्त्व यह है कि इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मैं मन वांछित फल देता हूँ| भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग की प्राप्ति होती।


हरियाली तीज पर्व तिथि व मुहूर्त 2020

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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