वैदिक सनातन धर्म परम्परा में हमारे प्राचीन ऋषि महर्षियों ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर मानवों के कष्टों को दूर करने हेतु अनेकों व्रतों का उल्लेख किया है। जिनका अनुसरण करने मात्र से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर तो होते ही हैं, साथ ही साथ मनोकामना भी पूरी होती है।
कुछ ऐसे विशेष व्रत हैं जिनके करने मात्र से व्यक्ति अपनी विशेष मनोकामनाएं पूरी कर सकता है, उन्ही में से एक प्रमुख व्रत है प्रदोष व्रत।
प्रदोष-व्रत का सनातन धर्म में अति-महत्त्वपूर्ण स्थान है। माना जाता है कि प्रदोष-व्रत आशुतोष भगवान शिव की प्रसन्नता व आशीर्वाद को प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ साधन है।
भगवान शिव को आशुतोष कहा गया है, आशुतोष शब्द का शाब्दिक अर्थ है शीघ्र प्रसन्न होने वाले।अतः प्रदोष-व्रत को श्रद्धा व भक्तिपूर्वक धारण करने मात्र से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
18 जुलाई 2020 एवं 1 अगस्त 2020 को शनि प्रदोष है। अतः समस्त भगवद्भक्तों द्वारा इसी दिन प्रदोष व्रत रखा जाएगा।
भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रदोष व्रत धारण किया जाता है। प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को यह व्रत धारण करने का विधान है
शनिवार के दिन होने के कारण इस प्रदोष को शनि-प्रदोष कहा जाता है। शनि प्रदोष व्रत सभी के लिए विशेष फलदायी होता है। शनि प्रदोष व्रत धारण करने से व्यक्ति को दांपत्य सुख, सौभाग्य प्राप्ति एवं सन्तान सुख की प्राप्ति होती है।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान शनिदेव को मनाने के ऐसे कई उपाय हैं जिनके द्वारा शनि की शांति होती है इसमें शनि प्रदोष के दिन व्रत एवं पूजा का सबसे अधिक महत्व है। सावन के पवित्र माह में दोनों शनि प्रदोष पड़ रहे हैं। जिसके कारण इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। अगर आपकी जन्मकुंडली में शनि दोष, शनिसाढ़े साती, शनि की लघु कल्याणी ढैय्या आदि है तो 18 जुलाई और 1 अगस्त को शिव पूजन के साथ साथ शनि पूजन अवश्य करें।
क्योंकि इस दिन कोई भी जातक यदि पूरी श्रद्धा व मन से शनि देव की उपासना करें तो उसके सभी कष्ट और परेशानियां निश्चित ही दूर होते हैं तथा शनि का प्रकोप, शनि की साढ़ेसाती या ढैया का प्रभाव भी कम हो जाता है, इसका अनुभव जातक स्वयं लेकर फिर दूसरे किसी अन्य पीड़ित के कष्ट को दूर करने हेतु उसे प्रेरित कर सकता है।
शनि को मनाने के लिए शनि प्रदोष व्रत बहुत फलदायी है। यह व्रत करने वाले पर शनिदेव की असीम कृपा होती है। शनि प्रदोष व्रत शनि के अशुभ प्रभाव से बचाव के लिए उत्तम होता है। यह व्रत करने वाले को शनि प्रदोष के दिन प्रात:काल में भगवान शिवशंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, तत्पश्चात शनिदेव का पूजन करना चाहिए।
इस दिन दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में आ रहीं परेशानियां और शनि के अशुभ प्रभाव से मिलने वाले बुरे फलों में कमी आती है। व्रत करने वाले जातक को यह पाठ कम से कम 11 बार अवश्य करना चाहिए। इसके अतिरिक्त शनि चालीसा, शनैश्चरस्तवराज:, शिव चालीसा का पाठ तथा आरती भी करनी चाहिए।
इस व्रत में प्रदोष काल में आरती एवं पूजा होती है। संध्या के समय जब सूर्य अस्त हो रहा होता है एवं रात्रि का आगमन हो रहा होता है उस प्रहर को प्रदोष काल कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है की प्रदोष काल में शिव जी साक्षात शिवलिंग पर अवतरित होते हैं और इसीलिए इस समय शिव भगवान का स्मरण करके उनका पूजन किया जाए तो उत्तम फल मिलता है। इसके साथ ही शनि प्रदोष होने के कारण शनि देव का पूजन करना अवश्य ही लाभदायी रहता है।
उत्तम फल की प्राप्ति हेतु किसी भी धार्मिक कर्म को करने के लिए पुराणों में कुछ विशेष नियम निर्धारित किए गए हैं। जिन्हें नित्य एवं नैमित्तिक दो भागों में विभाजित किया गया है। इनका अनुपालन कार्य की सफलता के लिए परम आवश्यक होता है।
अतः प्रदोष व्रत धारण करने के लिए व्रती को चाहिए कि वह त्रयोदशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जागकर यह प्रक्रिया पूरी कर शय्या का त्याग करे।
सर्वप्रथम अपनी हथेलियों के दर्शन करे और साथ में इस श्लोक का उच्चारण करे।
कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविंद, प्रभाते कर दर्शनम।।
उसके बाद भूमि को यह श्लोक कहते हुए प्रणाम करे।
समुद्र वसने देवी पर्वतस्तन मण्डले।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शम क्षमस्व मे।।
उसके बाद शौच मंजन स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान सूर्य नारायण को तांबे के लोटे में शुध्द जल भरकर धर्म अर्थ काम मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति की कामना करते हुए चार बार अर्घ्य प्रदान करे।
फिर आशुतोष भगवान श्री भोले नाथ का हाथ जोड़कर मन को एकाग्र कर स्मरण करें।
व्रत का संकल्प लें, और भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना करें। शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। धूप दीप प्रज्वलित कर पुष्प, पुष्पमाला अर्पित करें। फिर भाव से भोग लगाकर भगवान की आरती उतारें।
फिर पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण करें।
पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार करें।
अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए अष्टदल बनाएं। अष्टदल पर भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग स्थापित करें।
कुशा के आसन पर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पुनः विधिवत पूजन करें।
पूजन के उपरांत शिव पंचाक्षर मन्त्र का ॐ कार के साथ, ॐ नमः शिवाय का यथा शक्ति जाप अवश्य करें। पश्चात भगवान की आरती कर भोग लगाएं। सभी को प्रसाद वितरित कर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।
इस प्रकार नियम पूर्वक प्रदोष व्रत धारण करने से भक्त की मनोकामना भगवान अवश्य पूरी करते हैं।
विशेष कामना के अनुसार आप विधि पूर्वक प्रदोष व्रत धारण कर सकते हैं।
शनि प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष व्रत कथा सुनने का भी विशेष महत्व है अतः आइये हम सब मिलकर इस पुण्यदायी कथा का लाभ उठाएं।
शनि प्रदोष व्रत कथा
स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था।
शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया।
दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।
इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया।
यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती
स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था।
शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया।
दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।
इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया।
यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती
वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार
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