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वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य आदि नवग्रहों में राहु और केतु, इन दोनों ही ग्रहों को विशेष स्थान दिया गया है।क्योंकि यह ग्रह अन्य सभी ग्रहों के साथ मिलकर हमारे स्वास्थ्य, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, आदि सभी क्षेत्रों में हमारे सम्पूर्ण जीवन को हर प्रकार से प्रभावित करते हैं।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी ग्रहों की अपनी अलग अलग पहचान, अलग अलग स्वभाव, एवं प्रभाव है। कोई ग्रह नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह माना जाता है तो कोई ग्रह क्रूर ग्रह या अशुभ ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। राहु और केतु के लिए जनमानस में अनेक भ्रांतियां प्रचलित हैं। इन ग्रहों की महादशा अंतर्दशा या गोचर में व्यक्ति भयभीत हो जाता है। किन्तु क्या यह ग्रह सदा अशुभ फल ही प्रदान करते हैं? या जीवन के अनेक भागों में विशिष्ट स्थान भी प्रदान करते हैं।
आज हम इन छाया ग्रह कहे जाने वाले राहु और केतु ग्रह से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी, जैसे इनकी उत्तपत्ति राहु-केतु मंत्र, और इन ग्रहों की शांति के सरल सटीक उपायों के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।
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सबसे पहले बात करते हैं राहु ग्रह के बारे में, बहुत से लोग राहु ग्रह के बारे में ऐसा विचार रखते हैं कि राहु एक अत्यंत ही भयभीत करने वाला और बुरा ग्रह है, हालाँकि वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। कुंडली में राहु, सूर्य या चन्द्रमा के साथ हो तो ग्रहण दोष बनता है और उसका प्रभाव आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे स्वास्थ्य, व्यवसाय, विवाह, परिवार पर व्यापक रूप से पड़ता है।
राहु किसी भी व्यक्ति की कुंडली में विशेष स्थिति होने पर जातक को राजा से रंक और रंक से राजा बनाने का सामर्थ्य रखता है। जहाँ एक तरफ़ दुर्बल स्थिति का राहु जीवन में कई तरह की परेशानियों का कारण बनता है, वहीं, कुछ लोगों को राहु की विशेष स्थिति से प्रबल लाभ भी प्राप्त होता है।
यदि केतु ग्रह के बारें में बात करें तो केतु ग्रह को भी अधिकतर लोग अशुभ ग्रह ही मानते हैं जबकि हकीकत में ऐसा है नहीं। कुंडली के तीसरे छठे और ग्यारहवें भाव में उपस्थित केतु व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ाता है। कुंडली में यदि यह छाया ग्रह भी सूर्य या चन्द्रमा के साथ हो तो इससे भी ग्रहण दोष बनता है और इसका प्रभाव भी आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे स्वास्थ्य, व्यवसाय, विवाह, परिवार पर भी व्यापक रूप से पड़ता है।
राहु केतु इन दोनों ही ग्रहों की उत्तपत्ति की बात करें तो पौराणिक मत के अनुसार दैत्यराज हिरण्य कश्यप की बहन सिंहिका का पुत्र स्वरभानु बहुुुत बलशाली और बुद्धिमान था। समुद्रमंथन से निकले अमृत को प्राप्त करने के लिए जब देवताओं और राक्षसों में संग्राम की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया और दोनों के बीच अमृृृत बाँटने की बात कही। इसके बाद उन्होंने सर्वप्रथम देवताओं को अमृत बांटना शुरु किया। स्वरभानु ने जब यह देखा तो उसने देवताओं का वेष धारण किया और देवताओं के साथ बैठ गया।
जैसे ही उसने अमृत को चखा, सूर्य और चंद्रमा ने स्वरभानु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को उसकी सच्चाई बता दी। क्रोध में आकर भगवान विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया, लेकिन, तब तक अमृत उसके कंठ में पहुंच चुका था, इसके कारण उसका शरीर अमर हो गया।
फिर उसी स्वरभानु के कटे हुए सिर को राहु और धड़ को केतु कहा गया है, और यही वजह है कि तबसे राहु और केतु, सूर्य और चंद्रमा को ग्रसित करते हैं।
राहु और केतु सदैव वक्री अवस्था में माने जाते हैं। इन्हें प्रत्यक्ष ग्रह तो नहीं लेकिन छाया ग्रह के रूप में मान्यता मिली है। राहु को किसी विशेष राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है फिर भी कन्या राशि को इसका घर माना गया है, और मिथुन तथा धनु राशि में यह उच्च एवं नीच अवस्था में माना जाता है। मतान्तर से वृषभ राशि में भी उच्च और वृश्चिक राशि में नीच अवस्था में माना जाता है।
अगर राहु किसी की कुंडली के केंद्र भाव में त्रिकोण के स्वामी के साथ स्थित हो अथवा कुंडली के त्रिकोण भाव में केंद्र भाव के स्वामी के साथ स्थित हो तो प्रबल राजयोग कारक हो जाता है और ऐसी स्थिति में बहुत ही जल्दी व्यक्ति को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचा देता है। राजनीति और कूटनीति में माहिर बनना हो तो उसके लिए राहु का आशीर्वाद आवश्यक है।
और अगर केतु किसी की जन्मकुंडली के केंद्र भाव में त्रिकोण के स्वामी के साथ स्थित हो अथवा कुंडली के त्रिकोण भाव में केंद्र भाव के स्वामी के साथ स्थित हो तो प्रबल राजयोग कारक हो जाता है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति बहुत ही जल्दी सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंच जाता है। यह आपको धार्मिक बनाता है और यदि यह अत्यंत शुभ स्थिति में हो तो आपको किसी मंदिर अथवा धार्मिक स्थल या धार्मिक संस्था का प्रधान या पुजारी आदि भी बनवा सकता है। केतु से प्रभावित जातक अपने वाहनों पर झंडा लगाकर घूमते हैं। यदि राहु कुंडली में अच्छा और शुभ हो तो जातक की तीव्र बुद्धि बनाता है, और मान मर्यादाओं की बेड़ियों में नहीं बाँधता है बल्कि इनसे बाहर निकल कर आगे बढ़ाने में मदद करता है। वहीं यदि राहु अशुभ हो तो सोचने समझने की शक्ति में बाधा आती है, अच्छे मित्रों का साथ नहीं मिलता, हिचकी, आँतों की समस्या, अल्सर, गैस्ट्रिक और पागलपन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। राहु का रंग नीला है और, शत्रु, बिजली, नीचता, कपट, हाथी, बिल्ली आदि यह सब राहु के प्रतीक माने जाते हैं।
विभिन्न शास्त्रों में राहु ग्रह की प्रसन्नता और अनुकूलता प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार से किए जाने वाले उपायों का वर्णन प्राप्त होता है। आइये इनमें से कुछ श्रेष्ठ उपाय आपको बताते हैं जिससे आप भी राहु की प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं।
राहु को प्रसन्न करने के लिए गोमेद रत्न धारण करना बेहद उपयोगी बताया गया है। अगर गोमेद रत्न नहीं धारण कर सकते तो तुरसा या फिर साफी उपरत्न भी धारण किया जा सकता है। किन्तु ध्यान देने वाली बात यह है कि रत्न बिना जन्म कुंडली विश्लेषण के धारण नहीं करना चाहिए। अतः पहले किसी भी प्रबुद्ध ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें। तभी विधि विधान पूर्वक रत्न को अभिमंत्रित कर शुभ मुहूर्त में ही धारण करें। राहु के लिए व्रत शनिवार को किया जा सकता है। इसके अलावा, राहु कुंडली के जिस भाव में स्थित हो, उस भाव के स्वामी का जो वार हो, उस दिन भी राहु का व्रत भी किया जा सकता है। राहु का व्रत अट्ठारह शनिवारों तक करना चाहिए। व्रत के दिन राहु ग्रह का ध्यान इस श्लोक का पाठ करते हुए कर सकते हैं।
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी करालवक्त्रः करवालशूली।
चतुर्भुजश्चर्मधरश्च राहुः सिंहासनस्थो वरदोऽस्तु मह्यम्।।
अर्थात: नीले अंबर अर्थात् नीले वस्त्र धारण करने वाले, नीले विग्रह वाले, मुकुट धारी, विकराल मुख वाले, हाथ में ढाल, तलवार तथा शूल धारण करने वाले एवं सिंहासन पर स्थित राहु मेरे लिए वरदायी रहें।
राहु ग्रह के दोष को निवारण करने के लिए काली भेड़, गोमेद रत्न, लोहा, कंबल, सोने का बना नाग, तिल से भरे हुए तांबे के बर्तन का दान करना अत्यंत शुभ होता है। राहु यदि अशुभ है तो व्यकि को अनेक रोग घेर लेते हैं। राहु की अशुभता से कब्ज, चेचक, मस्तिष्क रोग, स्मरण शक्ति कमजोर होना, गठिया, कुष्ठ रोग, अतिसार, भूत प्रेत का डर, रीढ़ की हड्डी में दर्द या उसका टूटना, भूख प्यास से संबंधित बीमारी, वायु विकार, त्वचा रोग, हृदय रोग अथवा पेट में कीड़े जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
अतः राहु शांति हेतु शुभ मुहूर्त में राहु ग्रह के तांत्रिक मन्त्र, बीज मंत्र या वैदिक मन्त्र का जप अवश्य करवाना चाहिए। राहु का तांत्रिक मन्त्र ॐ रां राहवे नमः है।ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः यह राहु ग्रह का बीज मंत्र है। एवं वैदिक मन्त्र ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता।। यह है।
राहु शांति के निमित्त कुछ उपाय आप नियमित रूप से स्वयं भी कर सकते हैं। जैसे राहु ग्रह की शांति के लिए शिवलिंग पर चाँदी के नाग-नागिन चढ़ाना शुभ रहता है। शनिवार के दिन नीले रंग के कपड़े में काले रंग के तिल भर कर दान करना भी अति शुभकारी साबित होता है। रुद्राभिषेक से भी राहु दोष के निवारण में मदद मिलती है।
अब बात करते हैं केतु ग्रह के बारे में। केतु यदि अच्छा और शुभ हो तो जीवन में यश, सफ़लता, साहस, आध्यात्मिकता और वैराग्य प्रदान करता है।वहीं यदि केतु अशुभ हो तो जातक के पैरों में कमज़ोरी, नाना और मामा के प्यार से विमुख होना, रीढ़ की हड्डी, घुटने, लिंग, जोड़ों के दर्द, किडनी, पैर, कान, आदि जुड़ी समस्याओं से पीड़ित करता है।केतु का रंग भूरा है, एवं जहरीले जीव, भूरे एवं काले रंग के पशु–पक्षी केतु ग्रह के प्रतीक माने जाते हैं।विभिन्न फलित ग्रंथों के अनुसार केतु की प्रसन्नता के लिए लहसुनिया रत्न धारण करना चाहिए, इससे केतु का अनिष्ट दूर होता है। लहसुनिया की अनुपलब्धता में फिरोजा उपरत्न भी धारण किया जा सकता है।
केतु ग्रह की शांति के लिए शनिवार को व्रत रखा जाता है। इसके अतिरिक्त, केतु कुंडली के जिस भाव में स्थित हो, उस भाव के स्वामी का जो वार हो, उस दिन भी यह व्रत किया जा सकता है। केतु का व्रत अट्ठारह शनिवार तक नियमित रूप से करना चाहिए।
छाया ग्रह केतु के दोष के निवारण करने के लिए छाग (बकरी) का दान करना अत्यंत शुभ होता है।
केतु ग्रह यदि जन्मकुंडली में अशुभ हो तो हैजा, कैंसर, रक्ताल्पता, निमोनिया, जल जाना, त्वचा रोग, छूत की बीमारी अर्थात संक्रामक रोग, दमा रोग, मूत्र रोग, पित्त रोग, शरीर में खुजली होना, कब्ज हो जाना, प्रेत पीड़ा, चित्ती निकलना, तांत्रिक पीड़ा, काला जादू, अथवा बवासीर जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अतः केतु ग्रह की शांति हेतु तांत्रिक मन्त्र, वैदिक मन्त्र, या बीज मंत्र का जप करवाना लाभदायक होता है।
ॐ ह्रीं ऐं केतवे नमः यह केतु ग्रह का तांत्रिक मन्त्र है।
ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः यह बीज मंत्र है।
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे।
समुषद्भिरजायथाः ।। यह केतु ग्रह के निमित्त वैदिक मन्त्र है। केतु ग्रह की शांति हेतु कुछ सरल उपाय आप स्वयं भी कर सकते हैं। जैसे किसी भी देव मंदिर में जाकर झंडा लगाना केतु ग्रह की शांति में कारगर सिद्ध होता है। केतु ग्रह की शांति के लिए अश्वगंधा का पेड़ लगायें। रुद्राभिषेक करने से केतु ग्रह जनित दोष का निवारण होता है।
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