गुरुवार, 20 अगस्त 2020

गणेश चतुर्थी 2020 गणपति स्थापना मुहूर्त एवं पूजा विधि

नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव एवं माता पार्वती जी के पुत्र विघ्नहर्ता श्रीगणेश जी का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन हुआ था, अतः समस्त सनातन धर्मावलंबियों द्वारा इस दिन से लेकर 10 दिन तक भगवान गणपति जी का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
गणेश जन्मोत्सव के इन 10 दिनों में गणपति जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। अतः आज हम गणपति पूजन मुहूर्त, पूजन विधि, पूजन महत्व एवं पूजन से प्राप्त होने वाले लाभ के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे। 
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सर्वप्रथम बात करते हैं गणेश जी की स्थापना मुहूर्त के बारे में।
भगवान श्री गणेश जी की स्थापना इस वर्ष भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि अर्थात 22 अगस्त 2020 शनिवार को होगी। इस दिन को गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
इस वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी ति​थि का प्रारंभ 21 अगस्त शुक्रवार की रात्रि 11 बजकर 02 मिनट से हो रहा है, जो 22 अगस्त शनिवार को शाम 07 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। श्रीगणेश चतुर्थी की पूजा हमेशा दोपहर के मुहूर्त में की जाती है क्योंकि गणेश जी का जन्म दोपहर में ही हुआ था।
इस बार 22 अगस्त के दिन श्रीगणपति की पूजा के लिए दोपहर में 02 घंटे 36 मिनट का समय है।
अतः 22 अगस्त को दिन में 11 बजकर 06 मिनट से दोपहर 01 बजकर 42 मिनट के मध्य विघ्नहर्ता विनायक की स्थापना एवं पूजा के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त है।
अब बात करते हैं गणेश चतुर्थी व्रत एवं पूजन विधि के बारे में।

1.इस दिन व्रती को चाहिए कि प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व जगकर, स्नान आदि नित्य कर्म करने के बाद, अपने सामर्थ्य अनुसार, सोने, तांबे, मिट्टी आदि की गणेशजी की प्रतिमा लें।
2.साथ ही एक ताम्बा या पीतल धातु के कलश में विधिवत कलश स्थापना करके उसके ऊपर पूर्णपात्र रखकर गणेश जी को विराजमान करें।

3.गणेश जी की भी विधिवत पूजा अर्चना करके सिंदूर व दूर्वा अर्पित करें। एवं आरती करने के उपरांत कम से कम 21 लडडुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू गणेश जी को अर्पित करके शेष लड्डू प्रसाद में बाँट दें।

4.सांयकाल के समय गणेश जी का पुनः पूजन करना चाहिए। गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश चालीसा व आरती पढ़ने के बाद अपनी दृष्टि को नीचे रखते हुए चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। 

5.इस दिन गणेश जी के सिद्धिविनायक रूप की पूजा की जाती है।

1.यहां विशेष ध्यान देने वाली बात है कि इस दिन भूल से भी चन्द्र दर्शन न करें। मान्यता है की इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए वरना कलंक का भागी होना पड़ता है। अगर भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए तो इस दोष के निवारण के लिए नीचे लिखे इस मन्त्र का 28, 54 या 108 बार जाप करें। श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने से भी चन्द्र दर्शन का दोष समाप्त हो जाता है। चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र इस प्रकार है।   

सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।

सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।

2.ध्यान रहे कि तुलसी के पत्ते (तुलसी पत्र) गणेश पूजा में इस्तेमाल नहीं होते हैं । अतः तुलसी को छोड़कर बाकी सब पत्र-पुष्प गणेश जी को प्रिय हैं।
3.पूजन के उपरांत गणेश जी की तीन परिक्रमा करनी चाहिए।

अब बात करेंगे गणेश चतुर्थी माहात्म्य के बारे में।

माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक मणि चोरी करने का झूठा कलंक लगा था और वे अपमानित हुए थे। नारद जी ने उनकी यह दशा देखकर उन्हें बताया कि उन्होंने भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गलती से चंद्र दर्शन किया था। इसलिए वे तिरस्कृत हुए हैं। नारद मुनि ने उन्हें यह भी बताया कि इस दिन चंद्रमा को गणेश जी ने श्राप दिया था। इसलिए जो इस दिन चंद्र दर्शन करता है उसपर मिथ्या कलंक अवश्य लगता है। नारद जी की बात सुनकर श्रीकृष्ण जी ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया और दोष मुक्त हुए। इसलिए इस दिन पूजा व व्रत करने से व्यक्ति को झूठे आरोपों से मुक्ति मिलती है।

भारतीय संस्कृति में गणेश जी को विद्या-बुद्धि का प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, रक्षाकारक, सिद्धिदायक, समृद्धि, शक्ति और सम्मान प्रदायक माना गया है। वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को “संकष्टी गणेश चतुर्थी” व शुक्लपक्ष की चतुर्थी को “वैनायकी गणेश चतुर्थी” मनाई जाती है, लेकिन वार्षिक गणेश चतुर्थी को गणेश जी के प्रकट होने के कारण उनके भक्त इस तिथि के आने पर उनकी विशेष पूजा करके पुण्य अर्जित करते हैं। अगर मंगलवार को यह गणेश चतुर्थी आए तो उसे अंगारक चतुर्थी कहते हैं। जिसमें पूजा व व्रत करने से अनेक पापों का शमन होता है। अगर रविवार को यह चतुर्थी पड़े तो भी बहुत शुभ व श्रेष्ठ फलदायी मानी गई है।

महाराष्ट्र में यह पर्व गणेशोत्सव के तौर पर मनाया जाता है। जो कि दस दिन तक चलता है और अनंत चतुर्दशी पर पूर्ण होता है। इस दौरान गणेश जी को भव्य रूप से सजाकर उनकी पूजा की जाती है। अंतिम दिन गणेश जी की ढोल-नगाड़ों के साथ झांकियाँ निकालकर उन्हें जल में विसर्जित किया जाता है। गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर आपको भगवान गणेश जी की असीम कृपा प्राप्त हो और गणपति जी के आशीर्वाद से आपका जीवन हमेशा विघ्न-रहित रहे। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार।

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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