नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। मानव जीवन को समस्त जीव मात्र में सर्वश्रेष्ठ जीवन माना जाता है। उसकी श्रेष्ठता का सर्वश्रेष्ठ कारण है उसकी बौद्धिक क्षमता एवं सामाजिक जीवन। हमारे पूर्वजों ने सामाजिक जीवन प्रणाली को सुव्यवस्थित रखने हेतु ही मानव जीवन की सम्पूर्ण आयु को चार भागों में विभाजित करके, चार आश्रमों की व्यवस्था की। जिन्हें ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं सन्यास आश्रम के नाम से जाना जाता है। उसमें भी गृहस्थ आश्रम को अन्य तीनों का पालक होने के कारण सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। कहा भी गया है कि धन्यो गृहस्थाश्रमः। गृहस्थाश्रम प्रारंभ होता है विवाह के उपरांत, प्रत्येक मनुष्य तीन ऋणों से बंधा हुआ है, देव ऋण, ऋषि ऋण, और पितृ ऋण। विवाह उपरांत सन्तान की उतपत्ति होने पर ही व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो पाता है। किन्तु सभी दम्पतियों को संतान सहज ही प्राप्त हो जाए ऐसा हमेशा नहीं होता। अतः हमारे ऋषियों ने अनेक ऐसे जप तप व्रत विधान बताए हैं जिनसे सभी की संतान प्राप्ति की कामना पूरी हो जाती है। उन्ही में से एक प्रमुख व्रत है सन्तान सप्तमी व्रत।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के पञ्चाङ्ग परम्परा के अनुसार संतान सप्तमी का व्रत विशेष रूप से भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है। इस वर्ष 24 अगस्त 2020 सोमवार के दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के उद्देश्य से इस व्रत को रखेंगी। इस व्रत को विधि पूर्वक रखने से ना केवल संतान की प्राप्ति होती है बल्कि संतान के दीर्घायु जीवन और उनकी उन्नति के लिए भी रखा जाता है। आज हम संतान सप्तमी के महत्व और पूजा विधि के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। अतः आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं हमारे ज्ञानवर्धक कार्यक्रम देखने के लिए वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
सनातन धर्म की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संतान सप्तमी का व्रत विशेष रूप से भगवान शिव एवं माता पार्वती जी को समर्पित माना जाता है। इस व्रत के बारे में महाभारत काल में यदुवंश शिरोमणि भगवान श्री कृष्ण जी ने महाराज युधिष्ठिर जी से विस्तार पूर्वक चर्चा की थी। उन्होनें बताया था की एक बार लोमश ऋषि मथुरा आये थे और उन्होनें देवकी और वसुदेव को अपने मृत संतानों के दुःख से उभरने के लिए संतान सप्तमी का व्रत रखने की प्रेरणा दी थी। उनकी बात मानकर दोनों ने संतान सप्तमी का व्रत रखा और अपनी मृत संतानों के शोक से स्वयं को उभारने का भरसक प्रयास किया। इसलिए इस दिन व्रत रखना विशेष रूप से उन दम्पत्तियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जिन्हें सन्तान सम्बन्धी कोई भी कष्ट हो। या सन्तान प्राप्ति की कामना हो।
यदि व्रत विधि की बात करें तो सन्तान सप्तमी व्रत को करने वाली महिलाओं को सप्तमी के दिन विशेष रूप से सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद विधि पूर्वक भगवान् शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें और उनसे अपने संतान की रक्षा की कामना करें। शिव पार्वती पूजन के साथ ही व्रत की शुरुआत करें, इस दिन किया जाने वाला व्रत पूरी तरह से निराहार रखा जाता है। इसके बाद दोपहर के समय पुनः धूप दीप, अक्षत, सुपारी, नारियल और नैवेध के साथ शिव जी और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें। इस दिन प्रसाद के रूप में विशेष रूप से खीर-पूरी, गुड़ और मालपुएं चढ़ाना आवश्यक माना जाता है। इस पूजा के बाद शिव जी को रक्षा धागा चढ़ाया जाता है जिसे निःसंतान स्त्री बाद में स्वयं बांधती हैं और जिनकी संतान है वो अपने संतानों को उनकी रक्षा के लिए उस मौली के धागे को बांधती हैं। प्रत्येक व्रत में व्रत कथा सुनने का विशेष महत्व होता है। अतः आइए हम सब भी मिलकर सन्तान सप्तमी व्रत कथा में अवगाहन करें।
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में दो सहेलियां थीं एक का नाम चंद्रमुखी और दूसरी का नाम था रूपवती। दोनों का ही विवाह हुआ, किन्तु विवाह के उपरांत बहुत समय तक दोनों की ही सन्तान नहीं हुईं। दोनों ने ही अनेक प्रकार के उपाय किए लेकिन उनकी कामना पूर्ण नहीं हो पाई। एक दिन दोनों एक तालाब में स्नान करने पहुंची वहां उन्होनें कुछ महिलाओं को शिव पार्वती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा करते देखा। दोनों ने उत्सुकता पूर्वक उनसे पूछा की वो यह क्या रही हैं। उन महिलाओं ने दोनों को बताया की वो संतान प्राप्ति के लिए शिव पार्वती की पूजा कर रही हैं। चंद्रमुखी और रूपवती ने भी उनसे पूजन की विधि और व्रत रखने के सारे नियम पूछे और अपने-अपने घर वापिस लौट गयी। फिर जब दोनों सहेलियों ने इस व्रत को विधि विधान से रखकर भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा की। जिसके प्रभाव से भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की।
वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार।
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