हमारा यह देश भारतवर्ष त्यौहारों और मेलों का देश है। वस्तुत: वर्ष के प्रत्येक दिन कोई न कोई उत्सव किसी न किसी रूप में, अवश्य ही मनाया जाता है। पूरे विश्व की तुलना में हमारे भारत देश में सर्वाधिक त्यौहार मनाए जाते हैं। भारतवर्ष की यही संस्कृति पूरे विश्व में भारत को विशिष्ट स्थान प्रदान करती है।
हमारे देश में मनाया जाने वाला प्रत्येक त्यौहार अलग अवसर से संबंधित है, कुछ त्योहार, वर्ष की ऋतुओं के, कुछ फसल कटाई के, तो कुछ धार्मिक अवसर, ईश्वरीय सत्ता/परमात्मा व संतों के जन्म दिन अथवा नव वर्ष के अवसर पर मनाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश त्यौहार भारत के अधिकांश भागों में समान रूप से मनाए जाते हैं। कदाचित यह हो सकता है कि उन्हें देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता हो या अलग तरीके से मनाया जाता हो। कुछ ऐसे त्यौहार, जो पूरे भारत में एक ही दिन मनाए जाते हैं, उनमें से एक प्रमुख त्योहार है रक्षाबंधन। आज हम रक्षाबंधन पर्व के मुहूर्त विधि आदि सभी विषयों पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे। अतः रक्षाबंधन पर्व की पूर्ण जानकारी हेतु आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं अपने इस वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
सनातन हिन्दू धर्म परम्परा के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई बहनों के प्यार का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधती है और उनकी दीर्घायु व प्रसन्नता के लिए प्रार्थना करती हैं।साथ ही वचन लेती हैं कि समय आने पर वे अपनी बहन की रक्षा करें।
भाई, भी अपनी बहनों की हर प्रकार के अहित से रक्षा करने का वचन उपहार के रूप में देते हैं। यह त्यौहार मुख्यत: पूरे ही भारत में मनाया जाता है।
इस पवित्र त्योहार के प्रारंभ के बारे में पौराणिक ग्रन्थों में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं।
प्रचलित कथाओं के अनुसार,भगवान वेदव्यास जी द्वारा रचित पंचम वेद कहे जाने वाले महाभारत ग्रन्थ के एक प्रसंग के अनुसार पांच पांडवों की धर्म पत्नी द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण के हाथ से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा था। भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन स्वीकार किया, तथा सदा उसकी रक्षा करने का वचन दिया था। मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन के पवित्र पर्व की शुरुआत हुई थी। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के इस दिन ब्राह्मण श्रावणी उपाकर्म अर्थात यज्ञोपवीत अभिमंत्रित कर अपने पवित्र जनेऊ बदलते हैं और एक बार पुन: धर्मग्रन्थों के अध्ययन के प्रति स्वयं को समर्पित करते हैं।
इस दिन बहने शुभ मुहूर्त में भाई को तिलक लगाती हैं, उनकी कलाई पर राखी बांधती है और भाई बहनों को उपहार भेंट करते हैं। रक्षाबंधन पर्व के शुभ मुहूर्त की बात करें तो श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा अर्थात 3 अगस्त 2020 को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त प्रातः 9 बजकर 27 मिनट से रात्रि 9 बजकर 21 मिनट तक है।
सभी बहनों को अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते समय कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। क्योंकि यदि भाई की कलाई पर पूरे विधिपूर्वक राखी बाँधी जाए, तो भाई की उम्र लंबी होती है और आपके द्वारा की गई कामना भी पूरी होती है। अतः सर्वप्रथम तो राखी बांधने तक भाई और बहन दोनों को उपवास रखना चाहिए । फिर सबसे पहले बहनें राखी की थाली को सजाएं। थाली में राखीयां, दिया, रोली, कुमकुम, अक्षत और मिठाई आदि रखें। इसके बाद भाई के माथे पर रोली, कुमकुम अक्षत का तिलक करें। फिर भाई के दाहिने हाथ में राखी बांधें।इसके बाद भाई की आरती उतारें। यदि भाई आपसे बड़ा है तो उसके पैरों को छूकर उनसे आशीर्वाद लें। और छोटा है तो आशीर्वाद प्रदान करें। फिर भाई को मिठाई खिलाएं। राखी बांधने के बाद भाईयों को चाहिए कि अपनी बहनों को उनकी इच्छा के अनुरूप और अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपहार अवश्य भेंट करें।
मस्तिष्क पर तिलक लगाने की परम्परा को सनातन धर्म में सदा से ही विशिष्ट स्थान प्राप्त है। क्योंकि तिलक को प्यार, सम्मान, विजय व् पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। तिलक हमेशा माथे के बीचों-बीच आज्ञाचक्र पर ही लगाते हैं। माथे के बीच के स्थान को छठी इंद्री या अग्नि चक्र का स्थान भी कहा जाता है। इसी जगह से ही पूरे शरीर में शक्ति एवं ऊर्जा का संचार होता है। विज्ञान के अनुसार माथे पर चंदन रोली हल्दी आदि का तिलक लगाने से व्यक्ति की स्मरण शक्ति और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है, निर्णय लेने की क्षमता प्रबल होती है, बौद्धिक और तार्किक क्षमता बढ़ती है, साथ-साथ बल और बुद्धि में भी वृद्धि होती है।
कुलमिलाकर देखा जाये तो तिलक करने से होने वाले सभी लाभ एक भाई को उसकी बहन की रक्षा करने के लिए आवश्यक होते हैं। अतः बहन के द्वारा भाई के माथे पर तिलक लगाने को विशिष्ट माना गया है। भाव यही है कि बहनें अपने भाई को उनकी रक्षा करने के लिए तैयार कर रही है। इसलिए हर बहन रक्षाबंधन के दिन अपने भाई के माथे पर तिलक अवश्य करती है।
रक्षाबंधन के इस त्यौहार को देश के अलग-अलग हिस्सों में अनेक नामों से जाना जाता है। उत्तरांचल में यह “श्रावणी” के नाम से विख्यात है,और यहां इस दिन पुरोहित अपने यजमानों को यज्ञोपवीत धारण करवाने के साथ ही उनकी रक्षा की कामना से कलावा बांधते हैं। वहीं राजस्थान में यह त्यौहार रामराखी और चूड़ाराखी के नाम से जाना जाता है। यहाँ लोग रेशम के धागे को कच्चे दूध से अभिमंत्रित कर के बांधते हैं और उसके बाद हीं भोजन करते हैं। भारत के दक्षिणी हिस्से यानि तमिलनाडु, केरल और उड़ीसा के लोग रक्षाबंधन को “अवनि अवितम” के नाम से मनाते है।
हमारे समस्त दर्शकों को श्रावणी पर्व रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं।
वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार।
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