नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। प्राचीन आर्ष संस्कारों से परिवेष्टित भारतीय संस्कृति विश्व की सामाजिक परम्पराओं में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। मनुष्य जन्म से अबोध होता है, किन्तु विविध संस्कारों से परिष्कृत होकर ही मानसिक एवं बुद्धिगत विकृतियों को सही दिशा दे पाता है। संस्कारों से बुद्धि सुसंस्कृत होती है। भारतीय हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए नामकरण, चूड़ाकर्म, उपनयन, विवाह आदि षोडश संस्कार परम आवश्यक माने गए हैं। इन सभी सोलह संस्कारों में से विवाह संस्कार सार्वदेशिक रूप से सभी वर्णों में समान रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। महर्षि कश्यप के अनुसार विवाह ही गृहस्थाश्रमः धर्म की आधारशिला है। क्योंकि इसी आश्रम के माध्यम से मनुष्य देव, पितृ और ऋषि इन ऋण त्रय से उऋण होकर धर्म अर्थ काम मोक्ष इन चतुर्विध पुरुषार्थों की प्राप्ति करता है। यही कारण है कि हमारे धर्मग्रंथों में ब्रह्मचर्य गृहस्थ वानप्रस्थ एवं सन्यास इन चारों आश्रमों में गृहस्थाश्रम को सर्वश्रेष्ठ आश्रम माना गया है। विवाह एक उच्चकोटि का पवित्र एवं धार्मिक सम्बन्ध है। किंतु वर्तमान समय में विवाह योग्य सन्तानों के माता पिता की सबसे बड़ी चिंता का विषय भी यही है। अपने बच्चों के श्रेष्ठ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु माता पिता निरन्तर प्रयास रत रहते हैं। ज्योतिषियों के चक्कर लगाते हैं, नाते रिश्तेदारों से निवेदन करते हैं। किन्तु आज के समय में अच्छा रिश्ता हो जाना बहुत बड़ी उपलब्धि है। क्योंकि यदि किसी भी जातक को मनपसंद वर अथवा कन्या नहीं मिल रही हो या फिर विवाह में बार बार कोई ना कोई बाधा आ जाती हो तो इससे ना सिर्फ लड़का या लड़की परेशान रहते हैं, बल्कि उनका पूरा परिवार ही परेशान रहने लगता है। आज हम विवाह में आने वाली बाधाओं के ज्योतिषीय कारण एवं उनकी निवृत्ति आदि के बारे में महत्वपूर्ण चर्चा करेंगे। आप बनें रहेें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
यदि अनेक बार प्रयत्न करने पर भी विवाह में बाधाएं आ रही हों तो इसके अनेक कारण हो सकते हैं। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह सारा खेल जन्म-कुंडली में स्थित ग्रह योगों व दशाओं का होता है। कहा जाता है कि, यदि किसी भी जातक की जन्म-कुंडली का सप्तम घर यदि अशुभ ग्रहों से ग्रसित हो तो ऐसे जातकों के विवाह में अनेक बाधाएं आती हैं। और ऐसे जातकों का यदि विवाह हो भी गया तो विवाह सुख कम ही प्राप्त होता है। जन्मकुंडली में विवाह संस्कार में बाधा उत्पन्न करने वाले अनेक कारण होते हैं जैसे, जन्मकुंडली में पितृ दोष होना, सप्तम भाव में अशुभ ग्रहों की युति होना, लग्न चतुर्थ अष्टम द्वादश भावों में मंगल होना, अर्थात मांगलिक दोष होना, सप्तम घर का स्वामी नीच ग्रह के साथ अशुभ भाव में स्थित होना,जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में मंगल का शनि एवं शुक्र के साथ युति, होना विवाह में विलंब का कारण होता है। यदि कन्या की कुंडली में लग्न में मंगल, सूर्य व बुध हो और गुरु द्वादश भाव में हो तो कन्या का विवाह देरी से होता है। सप्तम भाव में नीच का सूर्य हो तो शादी विलम्ब से होती है या बार-बार बात बनते-बनते बिगड़ जाती है। नवमांस कुंडली के लग्न या सप्तम भाव में शनि ग्रह स्थित हो तो विवाह बहुत विलम्ब से होता है या बार-बार बात बनते बनते बिगड़ जाती है। अतः विवाह होने में बाधाएं आ रही हो तो किसी प्रबुद्ध ज्योतिषी से जन्मकुंडली का पूर्ण विश्लेषण अवश्य करवा लेना चाहिए। क्योंकि यदि बाधाओं का सही कारण पता हो तो बाधा निवृत्ति हेतु श्रेष्ठ उपाय किए जा सकते हैं।फिर भी कुछ श्रेष्ठ उपाय हम आपको यहां बता रहे हैं जिनका निष्ठा पूर्वक प्रयोग करने से आपको अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा, ऐसा हमें पूर्ण विश्वास है। सवा किलो चने की दाल एवं सवा लीटर कच्चा दूध गुरुवार एवं सोमवार को अपने घर के पास वाले मन्दिर के पुजारी जी को दक्षिणा सहित दान करें। इस उपाय से बन रहे रिश्तों में आ रही अड़चनें दूर होती हैं। यह प्रयोग आपको निरन्तर सात बार करना है। शुक्रवार के दिन अनजानी छोटी छोटी कन्याओं को, जिनकी उम्र 10 वर्ष से कम हो, उन्हें श्रृंगार सामग्री, जैसे चूड़ियां बिंदी कंगन नेलपॉलिश चुनरी या कपड़ों का दान करें। इससे शीघ्र विवाह के योग बनते हैं। यह प्रयोग आपको नौ दिन तक करना है। नवरात्रि इसके लिए श्रेष्ठ समय है। प्रयोग करके देखें, अवश्य लाभ होगा। नवरात्रि के नौ दिनों में, पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्। तारिणींदुर्गसंसार सागरस्य कुलोद्भवाम्॥इस मंत्र से नौ सम्पुटित पाठ किसी श्रेष्ठ वैदिक ब्राह्मण से करवाएं। शीघ्र उत्तम फल प्राप्त होगा। शीघ्र विवाह के लिए सोलह सोमवार के व्रत धारण करें। व्रत प्रारम्भ शुक्लपक्ष के प्रथम सोमवार से करें। सत्रहवें सोमवार को भगवान शिव का 11 रूद्री पाठ से दुग्ध मिश्रित गंगाजल द्वारा अभिषेक करें। एवं 11 ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित सफेद वस्त्र दान करें। यह प्रयोग प्रेम विवाह के लिए सर्वोत्तम प्रयोग है। इसके साथ ही यदि जन्मकुंडली में शनि दोष के कारण विवाह में बाधा आ रही है तो शनिवार को शिवलिंग पर काले तिल जल में मिलाकर अभिषेक करें। एवं शनिवार के दिन ही एक लोहे की कड़ाही में सवा पांच मीटर काला सूती कपड़ा तह बनाकर रखकर उसमें दक्षिणा सहित सवा किलो साबुत उड़द, सरसों के तेल की बोतल, एक साबुन रखकर शनि मंदिर में चढ़ा दें। ऐसा करने से शनि ग्रह से आ रही बाधा दूर होती है और शीघ्र विवाह के योग बनते हैं। यदि जन्म-कुंडली में मांगलिक दोष होने के कारण विवाह में बाधाएं आ रही हो तो लड़का या लड़की प्रत्येक मंगलवार श्री मंगल चंडिका स्त्रोत का पाठ करें।नित्यप्रति पीपल वृक्ष में पानी चढाने से एवं अपने नहाने के पानी में एक चुटकी हल्दी मिलाकर नहाने से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। कुंडली में मंगलिक दोष होने पर विवाह में यदि बाधा आ रही है तो मंगलवार के दिन व्रत रखकर हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। हनुमान जी को गेहूं के आटे एवं गुड़ से बने लड्डू का भोग लगाएँ।साथ ही हनुमान जी को सिन्दूर चढ़ाएं।
किसी भी उपाय को अपनाने से पूर्व एक बात अवश्य स्मरण रखें, कि मंत्रे तीर्थे द्विजे दैवे दैवज्ञे भेषजे गुरौ। यादृशी भावना कुर्यात सिद्धिर्भवति तादृशी।। अर्थात मन्त्र में, तीर्थ में, ब्राह्मण में, देवता में, ज्योतिषी में, वैद्य में, और गुरु में जिसकी जैसी भावना होती है उसे फल भी उसी के अनुरूप प्राप्त होता है। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार।
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