शरद पूर्णिमा के दिन मिलती है कर्जों से मुक्ति
शरद पूर्णिमा के दिन क्या करें और क्या नहीं, जानिए
नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। वर्ष की सभी पूर्णिमाओं में आश्विन पूर्णिमा विशेष चमत्कारी मानी गई है। क्योंकि मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा का चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है।आयुर्वेद के अनुसार इस तिथि पर चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता होती है। इसी आधार पर कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा होती है। उत्तर और मध्य भारत में शरद पूर्णिमा की रात्रि को दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है। मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पड़ने से यह कई गुना गुणकारी और लाभकारी हो जाती है। इसे कौमुदी व्रत एवं कोजागरी पूर्णिमा भी कहते है। पश्चिम जगत में इसे ब्लू मून कहा जाता है। कहते हैं कि नीला चांद वर्ष में एक बार ही दिखाई देता है। एक शताब्दी में लगभग 41 बार ब्लू मून दिखता है। इस वर्ष 30 अक्टूबर 2020 शुक्रवार के दिन शरद पूर्णिमा है। शरद पूर्णिमा के करने योग्य और न करने योग्य सभी कर्मों की पूर्ण जानकारी के लिए आप बने रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रकिरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं। पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर भी अमृत के समान हो जाएगी। उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में जब चन्द्रोदय हो जाए तब चांदी के किसी पात्र में दूध चन्द्रमा की रोशनी में रखें। प्रातः काल उस दूध का अपने इष्ट देवता को भोग लगाने के उपरांत परिवार के समस्त सदस्यों को प्रसाद रूप में पिलाएं। मान्यता के अनुसार शरद चन्द्र की किरणों के द्वारा अमृत तत्व दूध में आ जाता है, जिससे हर प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन कर, खीर का भोग लगाना चाहिए। खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन अर्थार्थी, अर्थात धन की कामना वाले भक्त मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। आरोग्यता की कामना से चन्द्र देव का पूजन किया जाता है। सन्तान प्राप्ति एवं पारिवारिक सुख के लिए भगवान शिव का पूजन किया जाता है। एवं जिन भक्तों को जीवन में प्रेम और मोक्ष पद की आकांक्षा हो, वह भक्त भगवान श्री कृष्ण की पूजा कर भगवान के रास चरित का श्रवण करते हैं। क्योंकि शरद पूर्णिमा की रात्रि में ही भगवान श्रीकृष्ण ने महारास लीला की थी।
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार,
भगवान् अपि ता रात्रीः शरदोत्फुल्लमल्लिकाः।
वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायाम् उपाश्रितः।१।
अर्थात, आठ वर्ष की उम्र पूर्ण होने पर नवें वर्ष में, भगवान श्रीकृष्ण ने योगमाया का आश्रय लेकर सुंदर शरद पूर्णिमा की रात्रि का निर्माण किया। अतः प्रयोजन विशेष के लिए निर्मित यह शुभ रात्रि समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली है। शरद पूर्णिमा की रात में की गई पूजा आराधना से वर्ष भर के लिए लक्ष्मी और कुबेर की कृपा प्राप्ति होती है। साथ ही भूत प्रेत पिशाच डाकिनी शाकिनी आदि बाधाओं की निवृत्ति के लिए शरद पूर्णिमा की रात्रि को हनुमानजी के सम्मुख चौमुखा दीपक जलाना चाहिए। इससे हनुमानजी सदैव रक्षा करते हैं। जिन दम्पत्तियों के दाम्पत्य जीवन में किसी भी प्रकार का क्लेश हो रहा हो, उन्हें शरद पूर्णिमा की रात्रि में कच्चे दूध से चन्द्रमा को एक साथ मिलकर अर्घ्य देना चाहिए, इससे आपसी प्रेम और सद्भाव की वृद्धि होती है। दाम्पत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है।
यदि किसी भी जातक की जन्म कुंडली में चंद्र ग्रहण दोष है तो शरद पूर्णिमा इस दोष से मुक्ति पाने का सर्वश्रेष्ठ दिन है। इस दिन चन्द्रमा से संबंधित वस्तुओं, जैसे - चांदी, चावल, चीनी, सफेद वस्त्र, मोती, दूध आदि का दान करना चाहिए। इसके अतिरिक्त 6 कच्चे नारियल अपने उपर से वार कर किसी बहती नदी में प्रवाहित करना चाहिए।
यह विशेष रूप से ध्यान रखें कि इस दिन किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन जैसे मांसाहार, आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही इस दिन किसी भी स्थिति में शराब ना पिए क्योंकि चन्द्रमा मन के कारक होते हैं, और शरद पूर्णिमा चन्द्रमा का दिन है। इस दिन शराब के सेवन से मस्तिष्क पर बहुत गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे भविष्य में विक्षिप्तता, अर्थात पागलपन हो सकता है।
चन्द्रमा का धरती के जल से संबंध है। जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव के शरीर में भी सर्वाधिक मात्रा में जल ही रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं। अत: इस दिन सेवन हेतु जल की मात्रा और उसकी स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें। इस दिन सफेद या पीले रंग के वस्त्र ही पहनें। काले नीले लाल वस्त्र भूलकर भी ना पहनें।
वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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