शनिवार, 30 जनवरी 2021

षटतिला एकादशी- 7 फरवरी 2021

नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी का व्रत हर माह में दो बार होता है, इस तरह साल भर में एकादशी की 24 तिथियां होती है, लेकिन अधिकमास और मलमास आने पर एकादशी व्रत तिथियों की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। वैसे तो शास्त्रों में सभी एकादशी का विशेष महत्व है, लेकिन षटतिला एकादशी पर दान पुण्य करना विशेष शुभ माना गया है। आज हम षटतिला एकादशी व्रत के बारे में चर्चा करेंगे, अतः आप बने रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है, कि यदि व्यक्ति षटतिला एकादशी के दिन लक्ष्मीपति भगवान विष्णु की उपासना कर उपवास करता है और अपनी सामर्थ्य अनुसार दान करता है, तो उस पर विष्णु जी की विशेष कृपा होती है। षटतिला एकादशी के दिन तिल का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि यदि इस दिन व्यक्ति 6 तरह से तिल का प्रयोग करता है, तो उसके सभी पापों का नाश हो जाता है, और उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस व्रत में तिल का छ: रूप में दान करना उत्तम फलदायी होता है। जो व्यक्ति जितने रूपों में तिल का दान करता है ,पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वह उतने हज़ार वर्ष स्वर्ग में वास करता है। ऋषिवर ने जिन 6 प्रकार के तिल दान की बात कही है वह इस प्रकार हैं 1. तिल मिश्रित जल से स्नान 2. तिल का उबटन 3. तिल का तिलक 4. तिल मिश्रित जल का सेवन 5. तिल का भोजन 6. तिल से हवन। इन चीजों का स्वयं भी प्रयोग करें और किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें भी इन चीज़ों का दान दें।

इस प्रकार जो षट्तिला एकादशी का व्रत रखते हैं भगवान उनको अज्ञानता पूर्वक किये गये सभी अपराधों से मुक्त कर देते हैं और पुण्य दान देकर स्वर्ग में स्थान प्रदान करते हैं। इस कथन को सत्य मानकर जो भग्वत् भक्त यह व्रत करता हैं उनका निश्चित ही प्रभु उद्धार करते हैं।

 ऐसी मान्यता है, कि यदि व्यक्ति षटतिला एकादशी के दिन व्रत, पूजा-पाठ कर तिल का प्रयोग और दान करता है, तो उसे मानसिक और शारीरिक सभी तरह की पापों से मुक्ति मिल जाती है।

एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाता है। अत: दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।  किन्तु यदि स्वास्थ्य समस्याओं के चलते आवश्यक हो तो भोजन शुद्ध सात्विक अथवा दुग्ध फलाहार आदि ही लेना चाहिए। एकादशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जगकर शौच स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सर्व प्रथम भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करें। इस दिन अर्घ्य जल में तिल अवश्य डालें। फिर व्रत का संकल्प लेकर भगवान नारायण की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग लगाएं। पूरे दिन निराहार व्रत रखकर सन्ध्या समय पुनः पूजन करें, एवं षटतिला एकादशी व्रत की कथा श्रवण करें। आरती करने के उपरांत पुनः भगवान को भोग लगाएं। आइए हम सब भी मिलकर षटतिला एकादशी व्रत की पुण्यदायी कथा को एकाग्रचित्त होकर श्रवण करें।

नारद मुनि त्रिलोक भ्रमण करते हुए भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे। वहां पहुंच कर उन्होंने वैकुण्ठ पति को प्रणाम करके उनसे अपनी जिज्ञास व्यक्त करते हुए प्रश्न किया कि प्रभु षट्तिला एकादशी की क्या कथा है और इस एकादशी को करने से कैसा पुण्य मिलता है।

देवर्षि द्वारा विनित भाव से इस प्रकार प्रश्न किये जाने पर लक्ष्मीपति भगवान विष्णु ने कहा प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मणी रहती थी। ब्राह्मणी मुझमें बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी। यह स्त्री मेरे निमित्त सभी व्रत रखती थी। एक बार इसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी आराधना की। व्रत के प्रभाव से स्त्री का शरीर तो शुद्ध तो हो गया परंतु यह स्त्री कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी अत: मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ड में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन भिक्षा लेने पहुंच गया।

स्त्री से जब मैंने भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ दिनों पश्चात वह स्त्री भी देह त्याग कर मेरे लोक में आ गयी। यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर वह स्त्री घबराकर मेरे समीप आई और बोली की मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली है। तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है।

मैंने फिर उस स्त्री से बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब वे आपको षट्तिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से ब्रह्मणी ने षट्तिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गयी। इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्न दान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।

वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है,  नमस्कार

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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