नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। सनातनी वैष्णव भक्तों का परम प्रिय अपरा एकादशी का व्रत सुख और सौभाग्य का प्रतीक है। यह एकादशी अजला के नाम से भी जानी जाती है। अपरा एकादशी व्रत के दिन व्रत धारण कर भक्तिभाव से भगवान त्रिविक्रम की पूजा करने से समस्त पाप, ताप सन्ताप दूर होते हैं और साथ ही भक्तिपूर्ण ओजस्वी जीवन के साथ साथ अनंत शक्ति भी मिलती है। इस दिन व्रत करने से कीर्ति, पुण्य और धन की वृद्धि होती है। वहीं मनुष्य को ब्रह्म हत्या, परनिंदा और प्रेत योनि जैसे पापों से मुक्ति मिल जाती है। अपरा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि, व्रत कथा के साथ ही मुहूर्त की सही जानकारी के लिए आप वीडियो को अंत तक अवश्य देखें, साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। अपरा एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है, जो कि इस वर्ष 2021 में 6 जून रविवार को रखा जाएगा। अपरा एकादशी का पारणा मुहूर्त 7 जून को प्रातःकाल 5 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 9 मिनट तक है। जिसकी अवधि 2 घण्टे 46 मिनट है। एकादशी व्रत धारण करने वाले भक्तों को सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य व्रत का पालन अवश्य ही करना चाहिये। साथ ही निंदा, अर्थात दूसरों की बुराई और दुष्ट लोगों की संगत से बचना चाहिए। अपरा एकादशी व्रत के महत्व की यदि बात करें तो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत बहुत पुण्यदायी होता है। ब्राह्मणों को गाय दान देने, वर्षों तक ध्यान साधना करने और कन्या दान से मिलने वाले फल से भी बढ़कर अपरा एकादशी का व्रत का फल है। इस व्रत को करने से भगवान त्रिविक्रम की कृपा सहज ही प्राप्त होती है। मनुष्य के समस्त दैहिक दैविक भौतिक दुख दूर होते हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।अपरा एकादशी का व्रत करने से लोग पापों से मुक्ति पाकर भवसागर से तर जाते हैं। एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाता है। अत: दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। किन्तु यदि स्वास्थ्य समस्याओं के चलते आवश्यक हो तो भोजन शुद्ध सात्विक अथवा दुग्ध फलाहार आदि ही लेना चाहिए। एकादशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जगकर शौच स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सर्व प्रथम भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करें। फिर व्रत का संकल्प लेकर भगवान नारायण की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग लगाएं। फिर पूरे दिन निराहार व्रत रखकर सन्ध्या समय पुनः पूजन करें, एवं वरूथिनी एकादशी व्रत की कथा श्रवण करें। आरती करने के उपरांत पुनः भगवान को भोग लगाएं। एकादशी के अगले दिन द्वादशी पर पूजन के बाद जरुरतमंद व्यक्तियों एवं ब्राह्मणों को भोजन करवाकर और दान-दक्षिणा देकर, अंत में भोजन करके व्रत खोलना चाहिए।
विधिपूर्वक पूजा एवं व्रत के साथ-साथ अपरा एकादशी के दिन व्रत कथा सुनने का भी अपना विशेष महत्व होता है। जो कोई भी व्यक्ति व्रत कथा सुनता है उसे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। तो आइए हम सब भी भाव से अपरा एकादशी व्रत कथा श्रवण करें।
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक बड़े धर्मात्मा राजा थे। उनका छोटा भाई वज्रध्वज, अपने सगे बड़े भाई के प्रति द्वेष की भावना रखता था। अवसरवादी वज्रध्वज ने एक दिन अवसर पाकर राजा की हत्या कर दी और उनके शव को जंगल में पीपल के एक बड़े पेड़ के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर उसी विशाल पीपल वृक्ष पर रहने लगी। प्रेतयोनि में होने से,वह आत्मा उस मार्ग से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को परेशान किया करती थी। एक बार एक सिद्ध ऋषि इस रास्ते से यात्रा कर रहे थे। तब उन्होंने पीपल वृक्ष पर प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना। ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा। द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर इसका पुण्य प्रेत को दे दिया। व्रत के प्रभाव से राजा की आत्मा प्रेतयोनि से मुक्त हो गई और वह भगवान नारायण के नित्य निवास वैकुण्ठ चला गया। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है।नमस्कार।
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