गुरुवार, 3 जून 2021

*नेत्र रोग के ज्योतिषीय कारण व उसके उपाय*

नमस्कार।। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और चंद्र दोनों प्रकाश ग्रह है। इसलिए जन्मकुंडली में दाईं आंख का विचार सूर्य और बायीं आंख के लिए चंद्र की स्थिति देखी जाती है। जन्मकुंडली में किसी व्यक्ति की आंखों की स्थिति जानने के लिए कुंडली के द्वितीय एवं द्वादश भाव का विचार किया जाता है। दायीं आंख के लिए द्वितीय भाव और बायीं आंख के लिए द्वाद्श भाव का विश्लेषण किया जाता है। आज हम नेत्र रोगों के कारण और उनके निवारण हेतु किए जाने वाले वैदिक उपायों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। आप विषय को समझने के लिए वीडियो को पूरा अवश्य देखें, साथ ही यदि पहली बार चैनल पर उपस्थित हुए हैं तो वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के द्वितीय भाव में सूर्य स्थित हों एवं द्वादश भाव में चंद्र स्थित हो तो व्यक्ति को नेत्र रोग होने की संभावनाएं अधिक होती हैं। जन्मांग पत्रिका के द्वितीय भाव में मंगल की स्थिति को भी आंखों के स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है। द्वितीय भाव में स्थित मंगल जातक को गंभीर नेत्र रोग दे सकता है। द्वितीय भाव में स्थित मंगल के कारण जातक को नेत्र संबंधी शल्य चिकित्सा भी करवानी पड़ती है, या ऐसे व्यक्ति को आजीवन चश्मा लगाना पड़ सकता है। द्वितीय एवं द्वादश भाव में अशुभ ग्रहों का होना, नेत्र रोगों का सूचक हो सकता है। 
जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र दूसरे स्थान में स्थित हों उस व्यक्ति की आंखे सुंदर और तीक्ष्ण नेत्र ज्योति से युक्त होती है। हालांकि यदि दूसरे भाव के स्वामी की स्थिति कुंडली में कमजोर हो या वह त्रिकभावों में स्थित हो तो नेत्र विषयों में शुक्र अपना पूर्ण फल नहीं दे पाता है।
दूसरे भाव में शनि ग्रह स्थित हों तो व्यक्ति को आंखों से जुड़े रोग होने की संभावनाएं बनी ही रहती हैं। ऐसे व्यक्तियों की दृष्टि अत्यंत क्षीण होती है।
जन्मकुंडली के द्वादश भाव में छायाग्रह राहु और केतु की स्थिति नेत्र संबंधित दुर्घटना होने की आशंका देती है।
टीवी, मोबाईल, प्रदूषण, के साथ साथ, आहार व्यवहार आदि कुछ ऐसी बातें हैं जिनके चलते आजकल हर किसी को आंखों से सम्बंधित समस्याएं हो ही जाती है। अतः आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए लोग कई तरह के उपाय करते हैं। कुछ उपाय वैदिक ज्योतिष शास्त्र और पुराणों में भी बताए गए हैं। इन उपायों के प्रयोग से न केवल आंख की रोशनी बढ़ती है बल्कि हृदय संबंधित समस्याएं भी दूर हो जाती है। ज्योतिष शास्त्र में स्वस्थ आंख और हृदय के लिए सूर्य ग्रह का महत्वपूर्ण स्थान है। सूर्य नेत्र का कारक ग्रह होता है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आपकी कुंडली में सूर्य की स्थिति अच्छी होनी परमावश्यक है। 
नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय है चाक्षुषोपनिषद अर्थात चाक्षुषी विद्या का पाठ।
प्राचीन समय में ऋषि-मुनि बूढ़े हो जाते थे लेकिन फिर भी उनकी आंखें स्वस्थ रहती थी। ऐसा इसलिए कि वे चाक्षुषोपनिषद अर्थात चाक्षुषी विद्या का पाठ करते थे। मान्यताओं के अनुसार इसका पाठ करने से आंखों से संबंधित सभी विकार दूर हो जाते हैं। प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व जगकर, शौच स्नान आदि से निवृत्त होकर अरुणोदय काल में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। ताम्बे के एक लोटे में शुद्ध जल भरकर, उसमें रोली, चावल, लाल रंग के फूल डालकर, पूर्वाभिमुख होकर, तीन बार अर्घ्य चढ़ाना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद, चाक्षुषोपनिषद का विधिवत पाठ करना चाहिए।
सर्वप्रथम एक आचमनी में जल लेकर विनियोग लें - ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्य ऋषिर्गायत्री छन्दः सूर्यो देवता चक्षूरोगनिवृत्तये विनियोगः । ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव । मां पाहि पाहि । त्वरितं चक्षुरोगान् शमय शमय । मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय । यथा अहम् अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय । कल्याणं कुरु कुरु । यानि मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षुःप्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय । ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय । ॐ नमः करुणा करायामृताय । ॐ नमः सूर्याय । ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नमः । खेचराय नमः । महते नमः । रजसे नमः । तमसे नमः । असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मा अमृतं गमय । उष्णो भगवाञ्छुचिरूपः । हंसो भगवान् शुचिरप्रतिरूपः । य इमां चाक्षुष्मतीविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति । न तस्य कुले अन्धो भवति । अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति । ॐ नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा । ॥ श्रीकृष्णयजुर्वेदीया चाक्षुषी विद्या सम्पूर्णा ।।
इस चाक्षुषी विद्या के श्रद्धा - विश्वासपूर्वक पाठ करनेसे नेत्रके समस्त रोग दूर हो जाते हैं । आँखकी ज्योति स्थिर रहती है । इसका पाठ नित्य करने वाले के कुल में कोई अन्धा नहीं होता । पाठ के अन्त में गन्धादि युक्त जल से पुनः भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर, प्रदक्षिणा कर नमस्कार करना चाहिये। किसी भी प्रकार की शंशय निवृत्ति के लिए आप स्क्रीन पर दिए गए नम्बरों के माध्यम से सम्पर्क कर सकते हैं। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार

https://youtu.be/hcQUGZcg9Gg


Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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