बुधवार, 16 जून 2021

निर्जला एकादशी 2021 : इस एक व्रत से सभी एकादशियों का मिलता है फल


नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। मानव जीवन में मन वचन कर्म के द्वारा अनेक प्रकार के पाप होते ही रहते हैं। किन्तु फिर भी मनुष्य के अंदर पाप करने की इतनी क्षमता नहीं है जितनी परमात्मा के पास पापों का अंत करने की। व्यक्ति यदि कर्म से पतित भी हो जाए, तो परमात्मा की शरणागति स्वीकार करने से, परमात्मा के नाम का आश्रय ग्रहण करने से, पापों से मुक्त हो जाता है। इसके लिए सनातन धर्म में अनेक प्रकार के व्रत हैं, जिन्हें करने से व्यक्ति के द्वारा किए गए पापों का नाश हो जाता है। इनमें एक प्रमुख व्रत है ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को होने वाली निर्जला एकादशी का। 
आज हम निर्जला एकादशी व्रत के बारे में चर्चा करेंगे। अतः निर्जला एकादशी व्रत की पूरी जानकारी, व्रत विधि, व्रत का फल, व्रत कथा के लिए आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का प्रावधान है। यही कारण है कि एकादशी को हरिवासर भी कहा जाता है यानी कि भगवान विष्णु का दिन। निर्जला एकादशी के व्रत को भीमसेनी व्रत भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि महर्षि वेदव्यास जी के आदेश पर पांडु पुत्र भीमसेन ने इस व्रत को धारण किया था। एकादशी के इस व्रत को निर्जला व्रत इसलिए कहते हैं क्योंकि एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल और अन्न, दोनों को ही ग्रहण नहीं किया जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर के सभी एकादशी व्रत करने का फल प्राप्त हो जाता है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस वर्ष यानी कि 2021 में यह व्रत 21 जून को सोमवार के दिन रखा जाएगा। जिसका पारणा मुहूर्त 22 जून 2021 को प्रातः काल 05 बजकर 23 मिनट से 08 बजकर 11 मिनट तक है। व्रत धारण करने वाले सभी भक्तों को चाहिए कि आहार व्यवहार में दशमी तिथि से ही शुद्धता का पूर्ण रूप से ध्यान रखें। एकादशी का व्रत करने हेतु प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में जागकर, स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त हो, पीले रंग के शुद्ध वस्त्र धारण कर, व्रत का संकल्प लें। ततपश्चात अपने घर के देवस्थान में एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर वैदिक विधि द्वारा कलश स्थापना कर के कलश के ऊपर ही पूर्णपात्र में सफेद तिल भरकर उसमें शालिग्राम भगवान, या भगवान विष्णु की मूर्ति को स्थापित करें। भगवान की धूप दीप जल चन्दन अक्षत नैवेद्य आदि से विधिवत पूजन करें। दीपक गौमाता के शुद्ध घी का या तिल के तेल का जलाएं। भोग लगाने हेतु पीले रंग के नैवेद्य, जैसे बेसन के लड्डू आदि का प्रयोग करें। भक्ति भाव से भगवान को तुलसी पत्र, तुलसी मंजरी, या तुलसी की माला चढ़ाएं। केले के पेड़ की पूजा करना न भूलें। निर्जला एकादशी व्रत करने और इस दिन भगवान श्रीहरि की विधिवत पूजन करने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है। व्रत करने वाले भक्त की सारी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं। मन शुद्ध होता है, सभी विकार दूर हो जाते हैं। दुर्घटनाओं के योग टल जाते हैं। निर्जला एकादशी का व्रत करने के पश्चात व्रती का शरीर और मन नवीन हो जाता है।  
निर्जला एकादशी के दिन दान का भी विशेष महत्व है। 
अतः निर्जला एकादशी के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार जातकों को अन्न, वस्त्र, जल, जूते, छतरी, फल, जूस आदि का दान करना चाहिए। विशेष रूप से इस दिन जल कलश दान करने से वर्ष भर के सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। जल कलश दान करने के लिए एक कलश में जल भर कर उसे एक सफ़ेद कपड़े से ढक दें। इसके बाद उस कलश के ऊपर चीनी और कुछ दक्षिणा रख कर ब्राह्मणों को दान कर दें। इससे सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
व्रत करने वाले सभी भक्तों को मन लगाकर निर्जला एकादशी व्रत की कथा को भी अवश्य ही सुनना चाहिए। अतः आइए हम भी भाव से इस पुण्यदायिनी कथा ज्ञान सरिता में अवगाहन करें।


भीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं भगवान की भक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता।
इस पर व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यदि तुम पाप पुण्य, धर्म अधर्म , स्वर्ग नर्क का भेद समझते हो तो प्रति मास की दोनों एक‍ा‍दशियों को अन्न मत खाया करो। भीम कहने लगे कि हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूँ कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूँ, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है सो मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना मेरे लिए कठिन है। अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे परमधाम की प्राप्ति हो जाए। श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही परमधाम की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों के अनुसार, शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है। और इन्हें न करने वाले को नरक की यातनाएं झेलनी पड़ती हैं।
व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और काँपकर कहने लगे कि अब क्या करूँ? मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हाँ वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूँ। अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए। यह सुनकर व्यासजी कहने लगे कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान आदि देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर आप भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है। व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जल रहने से पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते वरन भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करना चाहिए और गौदान करना चाहिए।
इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है। हमारे समस्त दर्शकों को निर्जला एकादशी व्रत पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।


Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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