नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में षष्ठ भाव से रोग, ऋण और शत्रुओं के बारे में विचार किया जाता है। यह कुंडली का सबसे विरोधाभासी भाव होता है। यह भाव रोगों को जन्म देता है लेकिन वहीं स्वस्थ होने की शक्ति भी प्रदान करता है। इस भाव से लोन या कर्ज मिलता है वहीं यह भाव कर्ज को चुकाने की क्षमता भी देता है। षष्ठ भाव शत्रुओं को भी दर्शाता है लेकिन विरोधियों से लड़ने की शक्ति और साहस भी प्रदान करता है। किसी भी तरह के समझौते और सहमति में कठिनाई, मामा, शरीर पर सूजन, पागलपन, मवाद से भरा फोड़ा, शत्रुता, ज्वर, कंजूसी, उधारी, मानसिक चिंता और पीड़ा, घाव, आंख में लगातार परेशानी, दान की प्राप्ति, असंयमित भोजन, कष्ट और परेशानी का भय बना रहना, सेवा, पेट और वात रोग से संबंधित गंभीर समस्या, चोरी, आपदा, जेल और कठिन कार्यों का अध्ययन षष्ठ भाव से ही किया जाता है। यदि कोई क्रूर ग्रह इस भाव में स्थित होता है तो वह इस भाव के नकारात्मक प्रभाव को कम कर देता है। इससे रोजमर्रा और प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में लाभकारी परिणाम प्राप्त होते हैं। मनुष्य जब तक जीवित रहता है वह अनेक दुखों और परेशानियों से घिरा रहता है। कुंडली में सिर्फ षष्ठम भाव ही यह तय करता है कि बाहरी दुनिया से लड़ने के लिए किसी व्यक्ति में कितनी आंतरिक शक्ति है। यदि कोई व्यक्ति रोग ऋण या शत्रुओं द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से लड़ने में नाकाम रहता है तो वह शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान हो जाता है। यदि व्यक्ति के पास चुनौतियों से लड़ने के लिए दृढ़ आत्मबल है, तो वह संसार में एक विजेता के रूप में उभरेगा। यह सब कुछ कुंडली में छठे भाव की मजबूत और दुर्बल स्थिति पर ही निर्भर करता है। रोग ऋण और शत्रुओं से मुक्ति पाने के सर्वश्रेष्ठ उपाय के बारे में आज हम विस्तार से चर्चा करेंगे, अतः आप बने रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आएकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। किसी भी प्रकार के रोग ऋण और शत्रुओं से मुक्ति पाने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है गजेंद्र मोक्ष। यह एक ऐसा अमोघ उपाय है, जिसके प्रयोग से बड़े से बड़ा ऋण, असाध्य रोग, और बड़े से बड़ा शत्रु भी समाप्त हो जाता है। इस स्तोत्र के प्रयोग को ध्यान से समझें। यदि आप या आपके परिवार के किसी भी सदस्य को रोग, ऋण या शत्रुओं के द्वारा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो, और बहुत से उपाय करने के उपरांत भी लाभ नहीं मिल पा रहा है तो आपको गजेंद्र मोक्ष का यह उपाय अवश्य ही प्रयोग करना चाहिए। किसी भी शुभ मुहूर्त में 5 ब्राह्मणों द्वारा भगवान नारायण का विधिविधान पूर्वक पूजन करवा कर, 108 पाठ गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के करवाएं। तथा पूजन वाले दिन से ही आप भी नियमित रूप से, प्रातः और सन्ध्या काल, दोनों समय एक एक बार इस दिव्य स्तोत्र का पाठ, इकतालीस दिन तक करें। पुनः भगवान नारायण की पूजा करें। इस प्रयोग से रोगों, कर्जे, और शत्रुओं से शीघ्र ही छुटकारा मिलता है। भगवान के प्रति जितना आपका विस्वास दृढ़ होगा, उतना ही शीघ्र आपको लाभ मिलेगा। श्रीमद्भागवत महापुराण के अंतर्गत वर्णित गजेंद्र मोक्ष का यह दिव्य पाठ आइए हम सब भी भाव से करें।
श्रीशुक उवाच
एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि ।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम् ॥ १
गजेन्द्र उवाच
ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम् । पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥ २
यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम् ।
योऽस्मात् परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम् ॥ ३
यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्वचिद् विभातं क्व च तत् तिरोहितम् ।
अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोऽवतु मां परात्परः ॥ ४
कालेन पञ्चत्वमितेषु , कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु ।
तमस्तदाऽऽसीद् गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभुः ॥ ५
न यस्य देवा ऋषयः पदं विदु
र्जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम् ।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ॥ ६
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं
विमुक्तसङ्गा मुनयः सुसाधवः ।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतात्मभूताः सुहृदः स मे गतिः ॥ ७
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा
न नामरूपे गुणदोष एव वा ।
तथापि लोकाप्ययसंभवाय यः
स्वमायया तान्यनुकॉलमृच्छति ॥
तस्मै नमः परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये । अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्यकर्मणे ॥ ९
नम आत्मप्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने ।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ॥१०
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्येण विपश्चिता ।
नमः कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ॥११
नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुणधर्मिणे ।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ॥१२
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे ।पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नमः ॥१३
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे ।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नमः ॥१४
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय
निष्कारणायाद्भुतकारणाय
सर्वांगमाम्नायमहार्णवाय
नमोऽपवर्गाय परायणाय ॥ १५
गुणारणिच्छन्नचिदूष्मपाय
तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम
स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ।।१६
मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय
मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय ।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत
प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते ॥१७ आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तै
दुष्प्रापणाय गुणसङ्गविवर्जिताय ।
मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभाविताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय ॥१८
यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा
भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति ।
किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं
करोतु मेऽदभ्रदयो विमोक्षणम् ॥१ ९
एकान्तिनो यस्य न कञ्चनार्थ
वाञ्छन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः ।
अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमङ्गलं
गायन्त आनन्दसमुद्रमग्नाः ॥२०
तमक्षरं ब्रह्म परं परेश
मव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम् ।
अतीन्द्रियं सूक्ष्ममिवातिदूर
मनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे ॥२१
यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः । नामरूपविभेदेन फल्व्या च कलया कृताः ॥ २२ यथार्चिषोऽग्नेः सवितुर्गभस्तयो
निर्यान्ति संयान्त्यसकृत् स्वरोचिषः ।
तथा यतोऽयं गुणसंप्रवाहो
बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः ॥ २३
स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यङ्
न स्त्री न षण्ढो न पुमान् न जन्तुः ।
नायं गुणः कर्म न सन्न चासन्
निषेधशेषो जयतादशेषः।।24
जिजीविषे नाहमिहामुया कि
मन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लव
स्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम् ॥२५
सोऽहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम् ।
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोऽस्मि परं पदम् ॥२६ योगरन्धितकर्माणो हृदि योगविभाविते ।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोऽस्म्यहम् ॥ २७
नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग
शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये
कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने ॥२८
नायं वेद स्वमात्मानं यच्छक्त्याहंधिया हतम् ।
तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोऽस्म्यहम् ॥२ ९
श्रीशुक उवाच
एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेष
ब्रह्मादयो विविधलिङ्गभिदाभिमानाः ।
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात्
तत्राखिलामरमयो हरिराविरासीत् ॥३०
तं तद्वदातमुपलभ्य जगन्निवास :
स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्धिः ।
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमान
श्चक्रायुधोऽभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः ॥३ ९ सोऽन्तःसरस्युरुबलेन गृहीत आर्तो
दृष्ट्वा गरुत्पति हरिंख उपात्तचक्रम् ।
उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छ्रा
नारायणाखिलगुरो भगवन् नमस्ते ॥३२
तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य
सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार ।
ग्राहाद् विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं
संपश्यतां हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम् ॥ ३३।।
https://youtu.be/jYRpBlArrvE
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