मंगलवार, 29 जून 2021

योगिनी एकादशी 2021

नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। सनातनी वैष्णव भक्तों का परम प्रिय योगिनी एकादशी का व्रत सुख और सौभाग्य का प्रतीक है। योगिनी एकादशी व्रत के दिन व्रत धारण कर भक्तिभाव से भगवान नारायण की पूजा करने से समस्त पाप, ताप सन्ताप दूर होते हैं और साथ ही भक्तिपूर्ण ओजस्वी जीवन के साथ साथ अनंत शक्ति भी मिलती है। कहा जाता है कि सूर्य ग्रहण के समय जो फल स्वर्ण दान करने से प्राप्त होता है, वही फल योगिनी एकादशी का उपवास करने से मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख भोगता है। योगिनी एकादशी व्रत एवं पूजा विधि, व्रत कथा के साथ ही मुहूर्त की सही जानकारी के लिए आप वीडियो को अंत तक अवश्य देखें, साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
योगिनी एकादशी का व्रत वर्ष 2021 में 5 जुलाई सोमवार को रखा जाएगा। योगिनी एकादशी का पारणा मुहूर्त 6 जुलाई को प्रातःकाल 5 बजकर 28 मिनट से 8 बजकर 15 मिनट तक है। जिसकी अवधि 2 घण्टे 46 मिनट है। योगिनी एकादशी व्रत धारण करने वाले भक्तों को सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य व्रत का पालन अवश्य ही करना चाहिये। साथ ही निंदा, अर्थात दूसरों की बुराई और दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों की संगत से भी बचना चाहिए। 
योगिनी एकादशी व्रत के महत्व की यदि बात करें तो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत बहुत पुण्यदायी होता है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। आम, बड़, पीपल जैसे देव  के वृक्ष को काटने जैसे पाप तक से मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिये हुए श्राप का निवारण भी हो जाता है। यह एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रुप, गुण और यश देने वाली होती है। ब्राह्मणों को गाय दान देने, वर्षों तक ध्यान साधना करने और कन्या दान से मिलने वाले फल से भी बढ़कर योगिनी एकादशी का व्रत का फल है। इस व्रत को करने से भगवान नारायण की कृपा सहज ही प्राप्त होती है। मनुष्य के समस्त दैहिक दैविक भौतिक दुख दूर हो जाते हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाता है। अत: दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।  किन्तु यदि स्वास्थ्य समस्याओं के चलते आवश्यक हो तो भोजन शुद्ध सात्विक अथवा दुग्ध फलाहार आदि ही लेना चाहिए। एकादशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जगकर शौच स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सर्व प्रथम भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करें। फिर व्रत का संकल्प लेकर भगवान नारायण की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग लगाएं। फिर पूरे दिन निराहार व्रत रखकर सन्ध्या समय पुनः पूजन करें, एवं योगिनी एकादशी व्रत की कथा श्रवण करें। आरती करने के उपरांत पुनः भगवान को भोग लगाएं। एकादशी के अगले दिन द्वादशी पर पूजन के बाद जरुरतमंद व्यक्तियों एवं ब्राह्मणों को भोजन करवाकर और दान-दक्षिणा देकर, अंत में भोजन करके व्रत खोलना चाहिए। 
आइये हम सब भी भाव से योगिनी एकादशी व्रत कथा को श्रवण करें।
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि भगवन, मैंने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के व्रत का माहात्म्य सुना। अब कृपया आषाढ़ कृष्ण एकादशी की कथा सुनाइए। इसका नाम क्या है? माहात्म्य क्या है? यह भी बताइए।
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! आषाढ़ कृष्ण एकादशी का नाम योगिनी है। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। मैं तुमसे पुराणों में वर्णन की हुई कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहाँ फूल लाया करता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा। इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा। यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया। हेम माली राजा के भय से काँपता हुआ ‍उपस्थित हुआ। राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इस‍लिए मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।’ कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा। रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा। घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था। हेम माली वहाँ जाकर उनके पैरों में पड़ गया। उसे देखकर मारर्कंडेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई। हेम माली ने सारा वृत्तांत कह ‍सुनाया। यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूँ। यदि तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएँगे। यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया। हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।समस्त हरिभक्तों को योगिनी एकादशी व्रत पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।




Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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