शुक्रवार, 25 जून 2021

सन्तान गोपाल मन्त्र

नमस्कार, वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। पुन्नामनरकात् त्रायते इति पुत्रः ' अर्थात नरक से जो रक्षा करता है , वही पुत्र है । अर्थात् अपने पितरोंके लिये सद्गतिका प्रयास करने वाला पुत्र कहलाता है । हमारे शास्त्रों में औरस पुत्र की बड़ी महिमा है । श्राद्ध , तर्पणादि करने का मुख्य अधिकारी पुत्र ही है।
जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात् । 
गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभिःपुत्रस्य पुत्रता ॥
अर्थात, पिता की जीवित अवस्था में उनकी आज्ञा का पालन करना , मृत्युके अनन्तर क्षयाह तिथि में सुन्दर भोजन कराना तथा गया में पिण्डदान अर्थात् श्राद्ध करना - ये तीन मुख्य रूप से पुत्र के कर्तव्य हैं । प्रत्येक मनुष्यपर मुख्य रूपसे तीन प्रकारके ऋण होते हैं - १ - देव - ऋण , २ - पितृ - ऋण और ३ - मनुष्य ( ऋषि ) ऋण । तीनों प्रकारके ऋणसे मुक्त होनेकी विधि शास्त्रों में बतायी गयी है । पितृ - ऋणसे मुक्त होनेके लिये गृहस्थ जीवनमें संतानकी परम्परा, आवश्यक है । संतान होनेसे वंश - परम्परा अक्षुण्ण होती है तथा होनेवाली संततिके द्वारा श्राद्ध , तर्पण आदि पितृकर्म सम्पन्न होनेसे पितृ - ऋणसे मुक्ति मिलती है । यह तो संतानप्राप्तिका आध्यात्मिक पक्ष है । दूसरा लौकिक पक्ष भी है । संसारमें गृहस्थ पुरुषको समस्त सुखोंके रहते हुए भी यदि पुत्र सुख नहीं है तो उसे संसारके समस्त सुखोंमें 
नि : सारता प्रतीत होती है - ' अपुत्रस्य गृहं शून्यम् ' । जिसे पुत्र नहीं उसका घर सूना होता है , अतः लोकदृष्टि और आध्यात्मिक दृष्टि दोनों दृष्टियोंसे गृहस्थाश्रमको सुखी बनानेके लिये मनुष्यको सत्पुत्रकी प्राप्ति होनी चाहिये । सामान्यतः विवाहोपरान्त नवदम्पतीको संतानकी प्राप्ति स्वाभाविक है , परंतु प्रारब्धवशात् कभी - कभी किसी व्यक्तिको ग्रहबाधाके कारण संतान नहीं होती तो पुत्रप्राप्तिके लिये वह व्यक्ति औषधि - उपचारके साथ देवाराधन - अनुष्ठान तथा हरिवंशपुराणके श्रवण आदिका सहारा लेता है , यद्यपि प्रबल प्रारब्धको मिटानेमें कठिनाई होती है , परंतु अधिकतर लोगोंको सफलता मिलती है । शास्त्र संतानप्राप्तिके लिये मंत्रानुष्ठानकी विधि बताते हैं , इन्हें सावधानीपूर्वक करनेसे सफलता अवश्य प्राप्त होती है । आज हम सनत्कुमारसंहिताके आधारपर संतानगोपालके मंत्रका जप , उसकी विधि तथा स्तोत्रपाठ के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। आप विषय की पूर्णता के लिए वीडियो को अंत तक पूरा अवश्य देखें, और साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
सर्वांग सुंदर पुत्र की कामना वाले दम्पति शुक्ल पक्षकी दशमी तिथिको आधी रातके समय, किसी श्रेष्ठ वैदिक कर्मकांडी आचार्य की उपस्थिति में भगवान् श्रीकृष्णकी षोडशोपचार विधि से पूजा करे। पूजाके लिये स्वस्तिककी रचना करके उसके ऊपर गौ माता के शुद्ध घी का एक बड़ा दीपक प्रज्वलित करे। तत्पश्चात् एक चौकी में अष्टदल कमल, या सर्वतोभद्र मंडल बनाकर उसमें कलश स्थापना कर भगवान श्रीकृष्ण जी की पूजा करे । फिर दो कलशोंको जलसे भरकर उनकी विधिवत् स्थापना करके सम्पूर्ण उपचारोंसे युक्त पूजा करे । तत्पश्चात् उन कलशोंमें भक्तिपूर्वक भगवान् श्रीकृष्णका आवाहन करके पुनः उनका षोडशोपचार रीतिसे पूजन करे । तदनन्तर उन दोनों कलशोंका स्पर्श करके अनन्यभावसे एक हजार आठ बार सन्तान गोपाल मन्त्र का जप करे । इसके बाद द्वादशीको गोविन्दकी विधिपूर्वक पूजा करके सांवा के चावल की स्वादिष्ठ खीर तथा गाय के घी गुड़ से युक्त पकवान का भोग अर्पण करे । इन सबके साथ ऋतुफल फल भी होना चाहिये । इसके अतिरिक्त दाल , भात , स्वादिष्ठ सुस्निग्ध व्यंजन , कपिला गायके दूधका दही और खाँड भी रहना चाहिये । इन समस्त भोज्य पदार्थोंको पीतल की थाली में पीतल की ही कटोरियों में रखकर इनके पात्रभूत भगवान् विष्णुको इन्हें निवेदन करे । साथ ही शीतल कर्पूर और गुलाबसे सुवासित तथा कपड़ेसे छाना हुआ स्वच्छ जल अर्पण करे । इसके बाद अपनी आर्थिक शक्तिके अनुसार शुद्धबुद्धिसे भगवान् श्रीकृष्णमें श्रद्धा रखते हुए अपनी सम्पूर्ण कामनाओंकी पूर्तिके लिये ब्राह्मणोंको भोजन करवाएं । संस्कारयुक्त अग्निमें भगवान् विष्णुका आवाहन करके अर्घ्य आदिसे उनका पूजन करे । फिर १०८ बार हविष्य अर्थात ( खीर ) -की आहुति देकर शेष हविष्यको कहीं सुरक्षित रख दे । इसके बाद घी की ८०० आहुतियाँ दे । हुतशेष घृतको उक्त दोनों कलशोंमें गिराकर उस घृतमिश्रित जलद्वारा दम्पती ( यजमान और उसकी पत्नी दोनों ) का अभिषेक करे । तदनन्तर जलमय श्रीहरिका ध्यान करते हुए ब्राह्मण पुन : उन कलशोंके जलसे उन दोनोंका अभिषेक करके एक सौ आठ बार सन्तान गोपाल मंत्रका जप करनेके पश्चात् शेष रखे हुए हविष्यको यजमान - पत्नीके हाथमें दे दे । यजमान - पत्नी उस हविष्यको लेकर श्रीकृष्णका ध्यान करती हुई एक सुखद आसनपर पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाय और उसका भक्षण करे ; उस समय यह भावना करे कि इस हविष्यके साथ भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं मेरे उदरमें आकर विराजमान हुए हैं । फिर जब श्रेष्ठ ब्राह्मणलोग अच्छी तरह भोजन कर लें , तब यजमान पान और मोदक आदिसे उन्हें तृप्त करे । तत्पश्चात् वह श्रीविष्णुके चिन्तन - पूर्वक उन ब्राह्मणोंके चरणोंमें मस्तक झुकाये । उस समय ब्राह्मणलोग यजमान - दम्पतीसे यह कहें कि ' आप दोनोंके अभीष्ट मनोरथकी सिद्धि हो । ' फिर वे निष्पाप दम्पती यह भावना करते हुए कि ' अब हमारा मनोरथ सफल हो गया ' अत्यन्त प्रसन्न हो स्वयं भी भोजन करें । जो दम्पति धन खर्च करने में कंजूसी न करके शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान् विष्णु के प्रति भक्तिभाव से युक्त हो इस प्रकार पूजन आदि करता है , वह शीघ्र ही तेजस्वी एवं चिरायु पुत्र प्राप्त कर लेता है । उसका वह पुत्र भी वंशपरम्पराको चलानेवाला , विष्णुभक्त एवं परम बुद्धिमान् होता है । 
सनत्कुमारोक्त संतानगोपालमंत्र प्रयोग इस प्रकार है।
आचमन शुद्धि करण, भूमि, दीप, सूर्य, पूजन करने के उपरांत स्वस्तिवाचन कर संकल्प कर लेना चाहिए। ततपश्चात गणेश आदि पञ्चाङ्ग देवताओं का पूजन कर, भगवान श्रीकृष्ण का विधिविधान से पूजन कर एक आचमनी में जल लेकर विनियोग पढ़ें।
 ॐ अस्य श्रीसन्तानगोपालमन्त्रस्य श्रीनारद ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , श्रीकृष्णो देवता , ग्लौं बीजम् , नमः शक्तिः , पुत्रार्थे जपे विनियोगः । 
इसके बाद अंगन्यास करें। 
' देवकीसुत गोविन्द ' हृदयाय नमः । ' वासुदेव जगत्पते ' शिरसे स्वाहा । ' देहि मे तनयं कृष्ण ' शिखायै वषट् । ' त्वामहं शरणं गतः ' कवचाय हुम् । ' देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ ' अस्त्राय फट् । 
फिर हाथ में फूल और चावल लेकर भगवान का ध्यान करें।
शङ्खचक्रगदापद्म धारयन्तं जनार्दनम् । 
अङ्के शयानं देवक्याः सूतिकामन्दिरे शुभे ॥ 
एवं रूपं सदा कृष्णं सुतार्थं भावयेत् सुधीः ।।
पुत्रार्थी दम्पति को, पुत्रकी प्राप्तिके लिये सदा ऐसे रूपवाले जनार्दन भगवान् श्रीकृष्णका चिन्तन करना चाहिए , जो मंगलमय सूतिकागारमें शंख , चक्र , गदा और पद्म धारण किये देवकीके अंकमें शयन करते हैं । 
इसके बाद पुष्पांजलि भगवान के श्रीचरणों में अर्पित कर सन्तान गोपाल मन्त्र का शास्त्राज्ञानुसार तीन लाख की संख्या में जप पूर्ण करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है।
ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥ 
वैदिक विधि द्वारा सन्तान गोपाल मन्त्र के इस दिव्य प्रयोग हेतु आप हमसे स्क्रीन पर दिए गए नम्बरों के माध्यम से सम्पर्क कर सकते हैं। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।



Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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