नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। प्रत्येक मनुष्य का यह सपना होता है कि वह अपने जीवन काल में, एक सुंदर घर का निर्माण करे।भगवदकृपा से यह अवसर बहुत से व्यक्तियों को प्राप्त भी हो जाता है। किन्तु बहुत बार यह देखने को मिलता है कि व्यक्ति के स्वयं निर्मित किए हुए घर में निवास करने पर भी उन्हें शांति नहीं मिल पाती, उनके दैनिक जीवन में बहुत प्रकार की परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं। स्थापत्य वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की बनावट में, शास्त्रानुसार त्रुटियां रह जाने पर, इस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। और वास्तु दोष की निवृत्ति के लिए हमेशा यह भी सम्भव नहीं हो पाता कि घर को फिर से पुनर्निर्माण करवाया जाए। अतः हमारे पौराणिक ऋषि महर्षियों द्वारा स्थापत्य वास्तु शास्त्र में ऐसी स्थिति की निवृत्ति के लिए अनेक उपाय भी बतलाए गए हैं। जैसे घर में पौधे, दीवारों पर तस्वीरें, मूर्तियां, घड़ी आदि। किन्तु सही दिशा में सही मूर्ति, पौधे, तस्वीर आदि का होना ही वास्तु दोष से रक्षा करता है, अतः इसका समुचित ज्ञान होना परमावश्यक है। आज हम इस विषय पर विस्तृत चर्चा करेंगे, आप वीडियो को अंत तक पूरा अवश्य देखें, एवं साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
वास्तुदोष की निवृत्ति के लिए औषधीय गुणों वाले पौधों को घर में लगाना बहुत ही उत्तम उपाय है। इसके लिए आप घर की उत्तर पूर्व की दिशा का चयन कर सकते हैं। तुलसी , गिलोय, ग्वार पाठा, अपराजिता, आदि अनेक ऐसे पौधे हैं जिन्हें आप गमलों में लगाकर अपने आवास को वास्तु दोष मुक्त कर सकते हैं। घर के मंदिर में भगवान विष्णु, माता दुर्गा, राम कृष्ण शिव गणेश आदि देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर सकते हैं। किंतु स्मरण रहे कि मूर्तियां धातु से ही निर्मित हो, और आपके दाहिने हाथ के अंगूठे के आकार से छोटी और एक विलस्त से अधिक बड़ी नहीं होनी चाहिए। स्थापित मूर्तियों का नियमित पूजन करने से भी वास्तु जनित दोष दूर होते हैं।
वेदों में वास्तुपुरुष भगवान की प्रार्थना हेतु एक दिव्य मन्त्र है।
ॐ वास्तोस्पते प्रतिजानीह्यस्मान्स्वावेशो अनमीवो भवानः । यत्त्वेमहे प्रतितं नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥ इस मंत्र के भाव के अनुसार, पृथ्वी पर अमृत तत्व अर्थात जल के उपस्थित होने पर सर्वप्रथम एक कोशीय जीवों की उत्तपत्ति हुई। ततपश्चात द्विपद, चतुष्पद, आदि अनेकों जीव हुए। हमारे शास्त्रों के अनुसार प्रथम अवतार मत्स्य अवतार को माना गया है। मत्स्य अर्थात मछली।
विज्ञान भी इस बात को मानता है कि पृथ्वी पर जीवन प्रारम्भ पानी के जंतुओं से ही हुआ था। अतः मछलियों को जीवन का प्रतिबिंब माना गया है।
घर में मछली का छायाचित्र लगाना, अथवा धातु की मूर्ति स्थापित करना वास्तु शास्त्र में अत्यंत शुभ माना गया है। इस से घर के सदस्यों का जीवन दीर्घायु होता है। और वास्तु जनित दोष शांत होते हैं। किंतु स्मरण रहे कि मछलियों को घर में पालना वास्तु दोष कारक है। नदियों, सरोवरों में जाकर मछलियों को दाना डालना पुण्यदायी है।
घर में यदि समुद्र, नदी या फिर झरने का चित्र लगाया जाए तो वास्तु शास्त्र के अनुसार यह शुभ फलदायी सिद्ध होता है। शांत बहते पानी के स्रोत को निर्मलता का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में इन चित्रों के प्रभाव से आपका जीवन भी बिना किसी बाधा के सरलता से आगे बढ़ता चला जाएगा। सीधे शब्दों में कहें तो इन चित्रों को लगाने से जातकों के भाग्य खुल जाते हैं और बिगड़े हुए काम भी बनने लगते हैं।
कुछ मनोरम दृश्य जैसे कि सूर्योदय, हिमालय आदि ऊंचे पहाड़ों के चित्रों को भी घर में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इन चित्रों से आपका आत्मविश्वास दृढ़ होता है और आप अपने भविष्य को लेकर आशावान होते हैं।
घर के किसी सामुहिक कार्यक्रम के दौरान ली गई सभी सदस्यों की कोई अच्छी सी तस्वीर, जिसमें सभी प्रसन्नचित हों, अवश्य लगानी चाहिए। इससे आपके जीवन में खुशियाँ आएंगी और परिवार के लोगों के बीच प्यार बढ़ेगा। ध्यान रहे कि कभी भी घर में ऐसी कोई तस्वीर नहीं लगानी चाहिए जिसमें हिंसा हो रही हो। यहां तक कि वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में भगवान की भी ऐसी कोई तस्वीर नहीं लगानी चाहिए जिसमें वो कोई युद्ध कर रहे हों।
हम आशा करते हैं कि वास्तु शास्त्र से जुड़े इन कुछ नियम व उपायों से आपको अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा। लोककल्याण की भावना से आप इसे अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ जरूर साझा करें। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार
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