वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी जन्मकुंडली में सूर्य और बुध की युति होने से बनने वाले योग को, बुधादित्य योग के नाम से जाना जाता है। इस योग को राजयोग की संज्ञा दी गयी है। आज हम इस लेख के माध्यम से बुधादित्य योग के बारे में विस्तार से जानेंगें।
बुधादित्य योग, संसार के सभी प्राणियों की आत्मा के कारक, ग्रहों के राजा सूर्य और वाणी, वाणिज्य, बुद्धि के कारक, ग्रहों के राजकुमार कहे जाने वाले बुध ग्रह की युति होने पर निर्मित होता है।
सूर्य जहां व्यक्ति के जीवन में, आत्मा, पिता, सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, सरकारी सेवा क्षेत्रों में उन्नति आदि क्षेत्रों को नियंत्रित करते हैं वहीं बुध ग्रह का नियंत्रण व्यक्ति के ज्ञान, बुद्धि, संयम, व्यापार-व्यवसाय, तर्क , कैलकुलेशन , संचार आदि पर होता है।
किसी भी जातक की जन्मकुंडली में जब सूर्य और बुध एक साथ किसी एक ही भाव में बैठ जाते हैं तो इससे बुधादित्य योग का निर्माण होता है। और यह युति लगभग अस्सी प्रतिशत लोगों की जन्म कुंडली में होती है, तो प्रश्न उठता है क्या सबको बुध आदित्य राजयोग का लाभ मिलता है? बिल्कुल भी नहीं।
बुधादित्य योग सभी के लिए हमेशा अच्छा फल दे यह आवश्यक नहीं है, कुंडली के अन्य ग्रहों की स्थिति, बलाबल,एवं ग्रहों की दृष्टि पर भी इस योग का फल निर्भर करता है। साथ ही यह योग बनाने वाले सूर्य और बुध दोनों का स्वग्रही, एवं बली होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त सूर्य और बुध के उच्च और नीच राशि का विचार करना भी परम आवश्यक होता है। किसी भी जातक को बुधादित्य योग के शुभ फल तभी मिलेंगे जब सूर्य और बुध की युति जन्मकुंडली के, केंद्र, अर्थात लग्न चतुर्थ सप्तम और दशम भाव, त्रिकोण अर्थात लग्न पंचम और नवम भाव के साथ ही द्वितीय भाव अथवा एकादश भाव में बने। या बुधादित्य राजयोग के शुभ फल केवल उन्हीं लग्न वाले जातकों को मिलते हैं जिनकी जन्मकुंडली में सूर्य और बुध दोनों ही ग्रह योग कारक होते हैं जैसे - सिंह लग्न। साथ ही सूर्य बुध दोनों ही ग्रह बली अवस्था में हों, किसी भी पाप ग्रह से पीड़ित ना हो।सूर्य या बुध में कोई भी ग्रह अकारक या मारक ना हो।सूर्य बुध के बीच अंशात्मक दूरी जितनी कम होगी उतना ही अच्छा फल जातक को मिलेगा। १५ डिग्री से अधिक का अंतर होने पर सूर्य बुध युति का शुभ फल नहीं मिलता। हालांकि बुध ग्रह को अस्त होने का दोष नहीं लगता है।
यदि जन्मपत्रिका में बुध सूर्य युति लग्न द्वितीय चतुर्थ पंचम सप्तम नवम दशम या एकादश भाव में अकेले हो, कोई भी मारक या क्रूर ग्रह साथ ना हो ना ही किसी मारक या क्रूर ग्रह की दृष्टि हो तो बुधादित्य योग का फल अवश्य मिलता है। यदि सूर्य बुध पर गुरु की दृष्टि हो तो उत्तम फल प्राप्त होता है। सूर्य या बुध ६ ८ १२ भाव के स्वामी नहीं होने चाहिए। नवमांश में भी सूर्य बुध नीच राशि गत ना हों। और लग्न और नवमांश दोनों में सूर्य बुध युति हो तो बुधादित्य योग के सर्वोत्तम फल की प्राप्ति होती है। हम अगले लेख में जन्मकुंडली के अलग अलग भावों में बुधादित्य योग के फलों पर चर्चा करेंगे। अपनी जन्म कुंडली का सशुल्क विश्लेषण करवा कर शुभ अशुभ योग एवं ग्रह दशाओं की पूर्ण जानकारी के लिए आप 9012754672, 9634235902 इन नम्बरों के माध्यम से हमसे संपर्क कर सकते हैं।
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